नई दिल्ली/ टीम डिजिटल। कोरोना संकट के बीच करीब 500 वर्षों से इंतजार कर रहे राम भक्तों का सपना अब साकार होने जा रहा है। 5 अगस्त को जब पीएम मोदी राम मंदिर की नींव रखेंगे तो उन आठ प्रमुख किरदारों का संकल्प साकार होगा, जिन्होंने लगभग 70 साल पहले 'मंदिर वहीं बनाने' का संकल्प लिया था।
22 और 23 दिसंबर की घटना ने बदली अयोध्या की तस्वीर श्रीराम जन्मभूमि का विवाद तो सही मायने में लगभग 500 साल पूर्व 1528 से चल रहा था। जब यह बात कही जा रही थी कि बाबर के सेनापति मीर बाकी ने मंदिर को जबरन तोड़वाकर वहां मस्जिद बनवा दी। साल 1949 से पहले इस मंदिर के लिए 76 यु्द्ध लड़े गए। लेकिन मंदिर निर्माण का असली संकल्प 22 और 23 दिसंबर 1949 को अयोध्या में लिखी गई थी। हालांकि साल 1949 के बाद भी कई ऐसी घटनाएं हुईं जो रौंगटे खड़े कर देता है, फिर भी मंदिर निर्माण की सफलता का क्रेडिट साल 1949 को ही दिया जाता है।
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इन 5 लोगों ने ली प्राण प्रतिष्ठा माना जाता है कि ऑस्ट्रिया के पादरी जब साल 1740-1785 तक भारत का भ्रमण किया। इस दौरान लगभग 50 पृष्ठों में अयोध्या का वर्णन किया गया था। उन्होंने लिखा कि रामकोट में गुंबदों वाला ढांचा है, जहां पर भगवान श्रीराम समेत उनके तीनों भाईयों ने जन्म लिया था। पादरी के डायरी के आधार पर पांच लोगों ने मिलकर मंदिर निर्माण के सपने को देखा। इन पांच लोगों में गोरखपुर पीठ के महंत दिग्विजय नाथ, अयोध्या के महंत अभिराम दास, बाबा राघव दास, रामचंद्र परमहंस और हनुमान प्रसाद पोद्दार शामिल थे।
पोद्दार ने की थी गीता प्रेस की स्थापना बता दें, हनुमान प्रसाद पोद्दार वहीं हैं जिन्होंने हिंदू धर्मग्रंथों को सरल भाषा व सस्ती कीमत पर उपलब्ध करवाने के लिए गीता प्रेस गोरखपुर की स्थापना की। बताया जाता है कि इन पांच लोगों ने 22 दिसंबर 1949 की रात सरयू में स्नान कर संबंधित स्थल पर बालस्वरूप श्रीराम की मूर्ति की पूजा कर प्राण प्रतिष्ठा की। इन पांच लोगों के अलावा तीन और लोगों की भागीदारी को महत्वपूर्ण माना जाता है।
तीन अन्य लोगों की भूमिका प्राण प्रतिष्ठा के वक्त फैजाबाद के जिलाधिकारी थे केके नैयर। सिटी मजिस्ट्रेट थे गुरुदत्त सिंह। प्रतिष्ठा की जानकारी होने के साथ ही विवाद बढ़ गया और मुस्लिम पक्ष इसका विरोध करने लगे। विवाद बढ़ता देख दोनों अधिकारियों ने इस स्थान को कुर्क कर लिया। इसके बाद में गोपाल सिंह विशारद और रामचंद्र परमहंस ने फैजाबाद के सिविल जज के यहां मुकदमा दर्ज कर मांग की कि विपक्ष द्वारा हिंदुओं के पूजा पाठ में किसी भी तरह की कोई बाधा न डाली जाए।
इन्हीं लोगों ने मंदिर निर्माण की रखी नींव कहा जाता है कि इस घटना से तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू बहुत नाराज हुए थे। उन्होंने प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत से मूर्तियों को हटवाने को कहा, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। वहीं दूसरी ओर इन आठों किरदारों ने योजनाबद्ध तरीके से संबंधित स्थल पर कीर्तन शुरू कर दिया। बाद में उपर्युक्त नामित पांच लोगों ने जगह-जगह सभाएं कर लोगों को विषय के बारे में जागरूक करना शुरू कर दिया। इसी बीच केरल में बड़े धर्म परिवर्तन की घटना के बाद आरएसएस का ध्यान भी इस तरफ गया और मंदिर निर्माण के लिए बड़े आंदोलन की नींव रखी।
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