नई दिल्ली/कुमार आलोक भास्कर। आज से ठीक 1 साल पहले देश में हुए लोकसभा चुनाव में विपक्षी पार्टियों को धूल चटाते हुए नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की अगुवाई में केंद्र में सरकार बनी थी। लेकिन जब आप पिछले साल के चुनावी उथल-पुथल पर एक बार फिर से नजर दोड़ाएंगे तो यह साफ नजर आने लगेगा कि फरवरी में बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद ही बीजेपी की शानदार वापसी का भी रास्ता खुल गया था। भले ही विपक्ष इसे झुठलाता रहा हो।
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एनडीए ने शानदार की वापसी
खैर, नरेंद्र मोदी की अगुवाई में एक बार फिर एनडीए पहले से ज्यादा मजबूत होकर अपना सफर शुरु किया तो देखते-देखते 1 साल भी बीत गये। लेकिन यह साल अगर कहा जाए कि नरेंद्र मोदी के पिछले सभी 6 साल के कार्यकाल से ज्यादा प्रभावी,महत्वपूर्ण,निर्णायक और चुनौतीपूर्ण रहा है तो कहना गलत नहीं होगा। एक कहावत का जिक्र करना यहां जरुरी होगा कि पूत का पांव पालने में ही अक्सर देखकर पता लग जाता है।
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पहले साल में ही मोदी सरकार ने लिये ठोस निर्णय
या यूं कहें कि पहले साल का आगाज ऐसा हो तो अंजाम कैसा होगा मतलब बचे 4 साल अभी बाकी है, तो कयासों का बाजार भी गर्म है। जब 2024 के लोकसभा चुनाव होंगे तो बीजेपी सत्ता पर फिर से वापसी का कितना दावा ठोकेंगी या कोरोना काल से उबरते- उबरते ही कमजोर होकर सत्ता से बाहर हो जाएगी। इसके जवाब आने अभी बाकी है।
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शाह और मोदी की जोड़ी हुई हिट
लेकिन शपथ ग्रहण में गृह मंत्री के तौर पर अमित शाह को शामिल करने पर लगने लगा था कि यह जोड़ी अब कुछ ऐसा निर्णय लेगी जिसकी गूंज पूरी दुनिया सुनेगी। जो समय के साथ सच भी साबित हुआ। हालांकि यह बात छनकर भी सामने आई थी कि धारा 370 को हटाने की सारी प्रक्रिया मोदी सरकार ने लोकसभा चुनाव से ऐन ठीक पहले लाने की सभी औपचारिकता पूरी कर ली थी। इसी धारा 370 हटाने को ही मास्टर स्ट्रोक की तरह लोकसभा चुनाव में जनता के समझ पेश करने की रणनीति भी बन गई थी। लेकिन ऐन वक्त पर पुलवामा हमले ने मोदी सरकार को पाकिस्तान के खिलाफ कई आक्रामक कदम उठाने के लिये मजबूर कर दिया था। फिर धारा 370 को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। लेकिन मोदी-शाह की नजर से धारा 370 ओझल नहीं हुआ था।
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लेकिन Corona ने किया सभी जश्न को फीका
अब इस विश्लेषण में मोदी सरकार के धारा 370, नागरिकता बिल, शाहीन बाग विवाद आदि को फिलहाल अलग करके देखा जाए तो मोदी सरकार के 1 साल के कार्यकाल के अंतिम होते-होते सामने आई Corona संकट ने बड़ी दुविधा में डाल दी है। अभी तो मोदी सरकार की हनीमुन पीरियड खत्म भी नहीं हुई थी कि विश्वव्यापी महामारी कोरोना वायरस ने पीएम नरेंद्र मोदी के देश की इकॉनोमी को 5 ट्रिलियन बनाने की गुजांइश पर ही पानी फेर दिया।
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मजबूत सरकार जब दिखने लगी मजबूर...
जब देश में मजबूत सरकार हो, विपक्ष मिमयाने पर मजबूर हो, दुनिया की सुपरपॉवर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी पीएम मोदी के ताल से कदमताल करने और थिरकने के लिये लालायित हो तो एक सरकार के मुखिया के तौर पर उन्हें बहुत संतोष होना स्वाभाविक होता है। लेकिन क्या इसी ट्रंप दौरे से पीएम मोदी की उल्टी गिनती भी शुरु हो गई है? यह बहुत बड़ा प्रश्न है। जिसके जवाब को खोजने के लिये गहराई से देश की मौजूदा हालात को समझने की जरुरत है।
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देश में 25 मार्च से ही लॉकडाउन लागू है
इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि कोरोना संकट काल में पीएम नरेंद्र मोदी ने 25 मार्च से ही देश में लॉकडाउन की घोषणा का साहसिक फैसला किया था। जो अभी दो महीने बीतते हुए आगे फिर से लॉकडाउन को जारी रहने की पूरी की पूरी संभावना है। भले ही विपक्ष लाख कहें कि लॉकडाउन को लागू करने में पीएम मोदी ने देरी की हो,लेकिन सच है कि जब देश में 100 कोरोना केस थे, तभी इसे लागू का फैसला लिया गया। अगर उस समय भी हरबड़ाहट में लॉकडाउन नहीं लागू किया जाता तो आंकड़े संक्रमितों और मरने वालों का कई हजार गुणा होता तो आश्चर्य भी नहीं होता।
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राहुल ने दिखाई अदभुत सक्रियता
लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं है कि पीएम नरेंद्र मोदी के कोरोना वायरस से लड़ने के तौर-तरीके पर सवाल न खड़ा किय जाए। विपक्षी पार्टी खासकरके कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने जिस तरह से जिम्मेदारी से कोरोना काल में मोदी सरकार को घेरने की रणनीति बनाई उससे जरुर पीएम मोदी भी चौकन्ने हो गए होंगे।
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पूर्व गठबंधन सरकार के तौर-तरीके की भी झलक
राहुल का नया अवतरण कितना दिन रहेगा यह कहना कठिन है। लेकिन उन्होंने पूरी जिम्मेदारी का निर्वहन किया है। इस कोरोना वायरस ने मोदी सरकार को सबसे पहला जो आईना दिखा दिया कि भले ही आपकी सरकार पिछले 30 साल की सबसे मजबूत हो लेकिन बुनियादी और जमीनी हकीकत का सामना करने में पुराने सरकार के तौर-तरीके से कहीं अलग नहीं है।
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पीएम मोदी ने लॉकडाउन की गंभीरता को समझा
पीएम नरेंद्र मोदी ने कोरोना वायरस से लड़ने के लिये लॉकडाउन की गंभीरता को बखूबी समझा। लेकिन वे पिछले 20 साल से पहले सीएम फिर पीएम के रुप में काम करने का लंबा अनुभव भी समेटे हुए है। इतवे लंबे दिनों से शासन में रहने के बाद भी देश को Crisis से निकालने में वे कहीं न कहीं पिछड़ते ही गए। इसमें भी कोई दो राय नहीं है। सवाल यह उठता है कि देश में जिनके एक इशारे पर पत्ते भी खरकने के लिये तैयार होता हो वहां उन्होंने प्रवासी मजदूरों की समस्या को देखने और समझने के लिये दूरदर्शिता क्यों नहीं दिखाई?
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प्रवासी मजदूरों की बदरंग तस्वीरों से उठे कई सवाल
देश के प्रवासी मजदूरों की गंभीर और भयावह तस्वीर लगातार सोशल मीडिया पर चीख-चीखकर पीएम नरेंद्र मोदी से सवाल पूछती है। इन मजदूरों ने लोकसभा चुनाव में बहुत ही उम्मीद से पीएम मोदी को दोबारा सत्ता सौंपी थी। लेकिन जब उन्हें मोदी सरकार से बड़ी त्रासदी से निपटारे में फौरी तौर पर सहायता की उम्मीद थी तो सरकार मौन होकर देख रही थी। वो तस्वीर शायद ही कभी धुंधली होंगी जब दिल्ली के आनंद विहार हो या मुंबई का बांद्रा स्टेशन हो या उनके राज्य गुजरात का सूरत हो सभी जगह प्रवासी मजदूरों की बेकाबू भीड़ परेशान होकर अपने प्रदेश लौटने के लिये लालायित थी।
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केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकार तक रही फैल
सरकार ने डंडा से तो कभी प्यार से पुचकारकर शेल्टर होम में रखने की असफल कोशिश की। यह तस्वीर लॉकडाउन1 और लॉकडाउन 2 में कमोबेश एक जैसी ही रही। फिर लॉकडाउन 3 के शुरु होने से ठीक पहले 1 मई से श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चलाने का केंद्र सरकार ने देर से आए दुरुस्त आए के तर्ज पर चलाने का फैसला किया। यह फैसला स्वागत योग्य है।
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पीएम मोदी को नहीं दिखा मजदूरों का दर्द
लेकिन पीएम मोदी को जवाब देना होगा कि इन मजदूरों की दर्द पर तुरंत मरहम लगाने की कोशिश क्यों नहीं की? पीएम मोदी के अलावा यह सवाल देश के सभी राज्य सरकारों से भी है जिन्होंने शेल्टर होम में बेहतर सुविधा देने का नाटक किया तो आखिर किसके लिये? तीसरा सवाल देश के सभी उधोगपतियों से है कि शहर-शहर खड़ा करने वाले इन प्रवासी मजदूरों को क्यों नहीं कम से कम दो महीने के लिये भी अच्छे से रहने और खाने की व्यवस्था उठाई?
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महानगरों को बनाने वाले हुए बेघर
चौथा सवाल देश के सभी महानगरों के मकान मालिकों से लेकर छोट-छोटे कारोबार करने वाले लोगों ने क्यों नहीं इन प्रवासी मजदूरों के लिये दरियादिली दिखाई ताकि कम से कम एक समय का भोजन और रहने का व्यवस्था ही करके राष्ट्र के सामने आई सबसे बड़ी चुनौती से लड़ने में मदद की? कोरोना वायरस संकट ने पीएम मोदी,मोदी सरकार ,राज्य सरकार, उधोग पतियों और सभी छोटे-बड़े कारोबारियों को बेनकाब कर दिया। इन मजदूरों ने दिन को दिन नहीं समझा,रात को रात नहीं समझा अपना पसीना बहाकर देश की तरक्की और महानगरों की तरक्की से लेकर उधोगपतियों के तिजोरी भरने में अपना सर्वस्व लगा दिया। लेकिन बदले में किया मिला सबके सामने है।
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शेल्टर होम में खराब व्यवस्था
काश पीएम मोदी देश के सभी शेल्टर होम की निगरानी अपने मजबूत सरकार के जिम्मा ही रखती तो शायद ही इतनी बड़ी त्रासदी देखने को मिलती। फिर न तो ट्रेन चलाने की नौबत आती और इन प्रवासी मजदूरों को फिर से काम पर लौटने के लिये मनाया भी जा सकता था। लेकिन ऐसा हो नहीं सका।
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