नई दिल्ली/ टीम डिजिटल। केंद्र के नए कृषि कानूनों (New Farm Law) के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर पिछले करीब 50 दिनों से किसानों आंदोलन जारी है, इस बीच किसान संगठन और सरकार के बीच आठ बैठक हो चुका है जिसका कुछ खास परिणाम सामने नहीं आया। वहीं आज नौवें दौर के बैठक का आयोजन किया गया है। वहीं सुप्रीम कोर्ट (Suprime Court) की ओर से समिति गठित करने के आदेश के बाद भी किसानों को विश्वास नहीं है, और वे अपनी मांगों पर अड़े हुए हैं। ऐसे में आज दोपहर 12 बजे विज्ञान भवन में किसानों और सरकार के बीच नौवें दौर की वार्ता होगी।
वहीं बताया जा रहा है कि किसान नेताओं को उम्मीद नहीं है कि इस बातचीत से कोई समाधान निकलेगा। हालांकि, केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को उम्मीद है कि चर्चा सकारात्मक होगी।
किसानों को बैठक से उम्मीद नहीं भारतीय किसान यूनियन के नेता जोगिंदर सिंह उग्राहां ने कहा, हम सरकार के साथ बातचीत करेंगे। उन्होंने कहा, हमें शुक्रवार की बैठक से ज्यादा उम्मीद नहीं है, क्योंकि सरकार उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित पैनल का हवाला देगी। सरकार की हमारी समस्या सुलझाने की कोई अच्छी मंशा नहीं है। सिंह ने कहा कि किसान संघों को कोई समिति नहीं चाहिए। उन्होंने कहा, हम सिर्फ इतना चाहते हैं कि तीनों कृषि कानूनों को वापस लिया जाए और हमारे फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी दी जाए।
तीनों कानूनों को देशभर में बड़ा समर्थन बता दें कि कृषि क्षेत्र में सुधार संबंधी तीनों कानूनों को लेकर आंदोलनरत किसानों से एक तरफ सरकार वार्ता कर रही है, दूसरी तरफ सुप्रीमकोर्ट में इन्हें वापस लेने से इंकार कर चुकी है। शीर्ष अदालत में दाखिल हलफनामे में सरकार ने कहा कि तीनों कानूनों का पूरे देश में बड़ा समर्थन मिल रहा है। कृषि कानूनों को लेकर सरकार और आंदोलनरत किसान यूनियन के बीच 15 जनवरी को नौवें दौर की वार्ता प्रस्तावित है।
इस वार्ता का मुख्य मुद्दा तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने और न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी सुरक्षा देना है। लेकिन दो दिन पहले इससे जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय की ओर से दाखिल हलफनामे में साफ कहा गया है कि इन तीनों कानूनों को देशभर में बड़ा समर्थन मिला है। कुछ किसान और अन्य लोग इसका विरोध कर रहे हैं, जिनकी मांग है कि ये कानून वापस लिए जाएं।
उनकी मांग न तो जायज है और न ही सरकार को स्वीकार्य। हालांकि सरकार की तमाम दलीलों के बाद भी अदालत ने इन कानूनों के अमल पर फिलवक्त के लिए रोक लगा दी है, लेकिन यह अनिश्चितकाल के लिए नहीं है। कोर्ट ने एक कमेटी बना दी है, जो इस मामले की सुनवाई कर दो महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट देगी, जिसके बाद आगे की प्रक्रिया शुरू होगी।
सुप्रीमकोर्ट में दिए हलफनामे में कहा- तीनों कानूनों का देशभर में बड़ा समर्थन अदालत में दिए सरकार के हलफनामे से साफ हो गया कि वह कानूनों को रद्द करने अथवा वापस लेने के कतई पक्ष में नहीं है। इससे किसानों से प्रस्तावित वार्ता के औचित्य पर अब सवाल उठ रहे हैं। शुक्रवार, 15 जनवरी को प्रस्तावित दोनों पक्षों की वार्ता अब तक न तो टली है और न ही इसके होने को लेकर तस्वीर साफ है। 21 पेज के 41 बिंदुओं वाले इस हलफनामे में सरकार ने कहा कि याचिकाओं की सुनवाई के दौरान ऐसा संदेश गया कि इन कानूनों को पारित करने में सरकार ने जल्दबाजी की और पर्याप्त सलाह-मशविरा नहीं किया।
जबकि यह सच नहीं है। सरकार ने कोर्ट को बताया कि दो दशक से केंद्र सक्रिय रूप से राज्यों के साथ इस मसले को लेकर बातचीत कर रही थी। किसानों को अपनी उपज का बेहतर दाम और इसके लिए मुक्त बाजार मुहैया कराने की कवायद चल रही थी।
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