नई दिल्ली/टीम डिजिटल। गुजरात उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को महात्मा गांधी के प्रपौत्र तुषार गांधी द्वारा साबरमती आश्रम पुर्निवकास परियोजना के खिलाफ दायर एक याचिका को उस समय खारिज कर दिया जब राज्य सरकार ने आश्वासन दिया कि वह परिसर के एक एकड़ क्षेत्र में स्थित तीन प्रमुख स्थानों को नहीं ‘छुएगी।’ मुख्य न्यायाधीश अरविंद कुमार और न्यायमूॢत ए जे शास्त्री की पीठ ने पहली ही सुनवाई में जनहित याचिका का निपटारा कर दिया, जब महाधिवक्ता कमल त्रिवेदी ने आश्वासन दिया कि पुर्निवकास मुख्य आश्रम के आसपास के 55 एकड़ क्षेत्र में ही होगा।
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मुख्य न्यायाधीश कुमार ने जनहित याचिका को खारिज करते हुए कहा, ‘‘सरकार ने आश्वासन दिया है कि एक एकड़ के क्षेत्र में स्थित मौजूदा आश्रम में कोई बदलाव नहीं किया जाएगा और इसे यथावत बनाए रखा जाएगा। इस प्रकार सरकार के बयान से याचिकाकर्ता के सभी भय और आशंकाएं दूर हो जाती हैं।’’ मुख्य न्यायाधीश कुमार ने कहा, ‘‘इस याचिका पर विचार करने की आवश्यकता नहीं है। सरकार द्वारा दिए गए बयान के आलोक में हम इसका निपटारा कर रहे हैं।’’
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सरकार की ओर से पेश महाधिवक्ता त्रिवेदी ने अपने हलफनामे में पीठ को सूचित किया कि मुख्य परिसर के अंदर तीन प्रमुख आकर्षण-गांधी आश्रम, इसके अंदर संग्रहालय और मगन निवास को ‘छुआ’ नहीं जाएगा। महाधिवक्ता ने कहा, ‘‘यह दावा किया गया है कि हम गांधी आश्रम में एक मनोरंजन पार्क बना रहे हैं। हम ऐसा कुछ नहीं कर रहे हैं। स्टेच्यू ऑफ यूनिटी, या साबरमती रिवरफ्रंट के समय भी लोगों को इसी तरह की आपत्ति थी।’’
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त्रिवेदी ने अदालत से कहा, ‘‘लोग तीन चीजें देखने आते हैं-गांधी आश्रम, इसके अंदर का संग्रहालय और मगन निवास, ऐसी जगह जहां गांधीजी के शिष्य रहते थे। ये तीनों स्थान एक एकड़ के क्षेत्र में है। हम इसे छूने नहीं जा रहे हैं। हम इस खास स्थान के आसपास 55 एकड़ भूमि क्षेत्र को विकसित करेंगे।’’ तुषार गांधी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता भूषण ओझा ने कहा कि आश्रम परिसर एक ऐतिहासिक स्थल है, जिसे संरक्षित करने की आवश्यकता है और पुनर्विचार ऐतिहासिक महत्व वाले समूचे आश्रम के स्वरूप को बदल देगा। इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा, ‘‘वे (सरकार) कह रहे हैं कि वे आश्रम को नहीं छूएंगे। आप और क्या चाहते हैं?’’
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महात्मा गांधी के तीसरे बेटे मणिलाल के पोते तुषार गांधी ने अक्टूबर में याचिका दायर कर राज्य सरकार की 1,200 करोड़ रुपये की गांधी आश्रम स्मारक और इससे जुड़े क्षेत्र की विकास परियोजना को चुनौती देते हुए कहा था कि ‘‘यह राष्ट्रपिता की इच्छा और दर्शन के खिलाफ है।’’
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