Sunday, Apr 02, 2023
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मानव विकास सूचकांक में 130वें स्थान पर भारत, महिलाएं अभी भी पीछे

  • Updated on 9/15/2018

नई दिल्ली/टीम डिजिटल। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) द्वारा शुक्रवार को जारी ताजा मानव विकास सूचकांक में भारत 189 देशों में एक स्थान ऊपर चढ़कर 130वें स्थान पर पहुंच गया है। दक्षिण एशिया में भारत का मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) का मूल्य क्षेत्र के औसत 0.638 से अधिक है। इस सूची में बांग्लादेश और पाकिस्तान क्रमश: 136 और 150वें स्थान पर है। 2016 में भारत का स्थान 131 था।

एचडीआई में मानव विकास के तीन बुनियादी आयामों में दीर्घकालिक प्रगति का आकलन किया जाता है। ये हैं तीन आयाम..

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200 साल बाद मिलेगी महिलाओं के समानता
इस सूची में नार्वे, स्विट्जरलैंड, ऑस्ट्रेलिया, आयरलैंड और जर्मनी ऊपर है। रिपोर्ट के अनुसार भारत की सकल राष्ट्रीय प्रति व्यक्ति आय 1990 से 2017 के बीच 266.6 प्रतिशत बढ़ गई। भारत के एचडीआई मूल्य का 26.8 प्रतिशत असमानताओं की वजह से कम हो जाता है। भारत में नीति और विधायी स्तर पर काफी प्रगति होने के बाद भी महिलाएं राजनीतिक, आर्थिक तथा सामाजिक रूप से पुरुषों की तुलना में कम सशक्त हैं। साथ ही ये भी कहा गया कि भारत में महिलाओं को कार्यबल में समानता हासिल करने के लिए अभी 200 साल से ज्यादा इंतजार करना होगा।

असमानताओं की वजह से कम हुआ एचडीआई
यूएनडीपी रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले वर्ष के एचडीआई मूल्य 0.636 की तुलना में अब 0.64 मापा गया। भारत को मध्यम मानव विकास के रूप में वर्गीकृत किया गया है और 2017 एचडीआई की तुलना में इसकी रैंक एक स्थान कम हो गई।2018 के निष्कर्षों के मुताबिक, 1990 से 2017 के बीच, भारत का एचडीआई मूल्य 0.427 से बढ़कर 0.640 हो गया, जो लगभग 50 प्रतिशत की वृद्धि है, जिससे पता चलता है कि लाखों लोगों को गरीब की श्रेणाी से हटा दिए गए। असमानता के लिए समायोजित होने पर एचडीआई मूल्य एक चौथाई से अधिक की गिरावट आई है। भारत की असमानता-समायोजित एचडीआई (आईएचडीआई) का मूल्य 0.468 हो गया है, जो 26.8 प्रतिशत की गिरावट है, जो असमानता के कारण वैश्विक एचडीआई मूल्य में बदतर स्थिति है।

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इस आधार पर तुलना
एचडीआई में मानव विकास के तीन बुनियादी आयामों में दीर्घकालिक प्रगति का आकलन किया जाता है। ये आयाम प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय (जीएनआई) द्वारा मापा गया जीवन स्तर, जन्म में जीवन प्रत्याशा द्वारा मापा जाने वाला स्वास्थ्य और वयस्क आबादी और बच्चों के लिए स्कूली शिक्षा के अपेक्षित वर्षों के बीच शिक्षा के औसत वर्षों द्वारा इसके स्तर की गणना की जाती है।

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