नई दिल्ली/ हर्ष कुमार सिंह। उत्तर प्रदेश के तीनों उपचुनावों के नतीजे चौंकाने वाले हैं। मैनपुरी लोकसभा सीट पर डिंपल यादव ने बड़ी जीत जरूर हासिल की है, लेकिन मतदान के दिन तक भी किसी को यह उम्मीद नहीं थी कि समाजवादी पार्टी इतने बड़े अंतर से इस सीट को जीतने जा रही है। वहीं खतौली में बीजेपी के और रामपुर में समाजवादी पार्टी के हारने की उम्मीद किसी को नहीं थी और वो भी इतने बड़े अंतर से। इसकी सबसे बड़ी वजह है दलित मतदाताओं का रुख।
दलितों ने जीतने वाले प्रत्याशी की तरफ मतदान किया और बीजेपी का यह भ्रम टूट गया कि बसपा प्रत्याशी की गैरमौजूदगी में दलित वोट बीजेपी की तरफ चला जाता है। मैनपुरी लोकसभा सीट पर स्वर्गीय मुलायम सिंह यादव की कमी को पूरा करने के लिए डिंपल यादव से उपयुक्त प्रत्याशी कोई और नहीं हो सकता था। वैसे भी रामपुर व आजमगढ़ लोकसभा सीटों का उपचुनाव हारने के बाद अखिलेश यादव के सामने एक चैलेंज यह भी थी कि संसद में यादव परिवार की उपस्थिति को कैसे कायम रखा जाए?
अखिलेश यादव ने लोकसभा सीट त्याग दी और आजमगढ़ से धर्मेंद्र यादव भी उपचुनाव हार गए थे। ऐसे में मुलायम सिंह यादव के निधन की वजह से लोकसभा में यादव परिवार की उपस्थिति जीरो हो गई। 2019 के लोकसभा चुनाव में डिंपल यादव की कन्नौज से हार के बाद अखिलेश यादव ने यह मन बना लिया था कि डिंपल को एक्टिव राजनीति से दूर रखा जाए।
शायद घर में तीन किशोर बच्चों की जिम्मेदारी भी एक वजह रही होगी, लेकिन मुलायम सिंह के निधन के बाद फिर से डिंपल यादव का नाम चला। एक बार आजमगढ़ के उपचुनाव में भी डिंपल को चुनाव लड़वाने का विचार चला था। बाद में ये भी खबर आई थी कि शायद डिंपल को राज्यसभा भेजा जाएगा, लेकिन राज्यसभा सीट अखिलेश ने अपने सहयोगी दल रालोद के अध्यक्ष जयंत चौधरी को दे दी। कहा जा सकता है कि मुलायम सिंह यादव के आकस्मिक निधन ने डिंपल यादव के फिर से एक्टिव पॉलिटिक्स में आने की राह खोली।
मैनपुरी में बीजेपी रणनीतिक रूप से विफल रही। पहले खबर यह आई थी कि डिंपल के सामने उनकी देवरानी अपर्णा यादव को टिकट दिया जाएगा। लेकिन अपर्णा ने खुद प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी से मिलकर इससे इनकार कर दिया। अंत में शिवपाल यादव के पूर्व साथी व दो बार सपा के टिकट पर सांसद रह चुके रघुराज सिंह शाक्य को टिकट दिया गया। शाक्य के प्रति मैनपुरी के लोगों में अपनापन नहीं नजर आया जबकि डिंपल यादव सबको अपनी लगीं और इसलिए उन्हें बड़ी जीत मिली। बहू को चुनाव जिताने के लिए चाचा शिवपाल यादव भी साथ खड़े हो गए और बात बन गई। डिंपल 2.88 लाख वोटों से जीती।
रामपुर विधानसभा सीट का उपचुनाव भी चौंकाने वाला रिजल्ट लाया। आजम खां के खिलाफ मुकदमों की झड़ी लगा देने वाले आकाश सक्सेना ने 33 हजार वोटों की बड़ी जीत हासिल की। उन्होंने आसिम रजा को हराया जिन्होंने कुछ ही महीने पहले रामपुर लोकसभा सीट का उपचुनाव भी सपा के टिकट पर हारा था। बीजेपी के लिए रामपुर विधानसभा सीट जीतना बहुत कठिन कार्य था। भारी संख्या में मुस्लिम मतदाता इस सीट पर हैं। ऐसे में कहीं से भी यह नहीं लग रहा था कि आकाश सक्सेना इस चुनाव की जीत पाएंगे।
मार्च महीने में हुए यूपी के चुनावों के समय भी वे आजम खां से हार गए थे। लेकिन उपचुनाव में आजम खां सामने नहीं थे। इसके अलावा मतदाताओं की उदासीनता भी नजर आई। दस महीने के भीतर रामपुर में यह तीसरा चुनाव हो रहा था। पहले विधानसभा चुनाव, फिर लोकसभा उपचुनाव व अब विधानसभा सीट का उपचुनाव। यही वजह रही कि 34 प्रतिशत ही मतदान हुआ। माना जा रहा है कि बीजेपी को यहां पर पसमंदा मुसलमानों का भी वोट मिला है। कांग्रेस के पूर्व प्रत्याशी व रामपुर जिले के प्रभावशाली मुस्लिम नेता नावेद मियां ने भी आकाश सक्सेना का समर्थन कर दिया था।
हालांकि इसके लिए कांग्रेस ने उन्हें पार्टी से भी निकाल दिया, लेकिन रामपुर में आजम खां को हराने के लिए सब एक थे। आजम खां के करीबी फसाहत अली खां ने भी बीजेपी ज्वाइन कर ली थी। हालात ऐसे बने कि बीजेपी को यहां अर्से के बाद रामपुर विधानसभा सीट पर जीत हासिल हो गई, लेकिन फर्क इतना था कि सामने आजम खां परिवार का कोई प्रत्याशी नहीं था। मुजफ्फरनगर जिले की खतौली विधानसभा सीट का उपचुनाव बीजेपी के लिए सबसे बड़ा झटका है। ये सीट बीजेपी के हाथ से खिसकी है।
मुजफ्फरनगर दंगे की वजह से बीजेपी को ये सीट 2017 में मिली थी। दंगे की जड़ रहे कवाल गांव के पूर्व प्रधान विक्रम सैनी यहां से विधायक थे लेकिन हाल ही में उनकी विधायकी चली गई थी जब उन्हें दो साल की सजा सुनाई गई। बीजेपी ने यहां विक्रम की पत्नी राजकुमारी सैनी को टिकट दे दिया। रालोद-सपा गठबंधन ने बाहबुली मदन भैया को टिकट दिया। मदन भैया गुर्जर तीन विधानसभा चुनाव लगातार लोनी (गाजियाबाद) से हार चुके हैं लेकिन रालोद मुखिया जयंत चौधरी ने उन पर दांव लगाया और ये दांव सफल रहा।
गुर्जरों के अलावा जाटों ने भी रालोद को बढ़ चढ़कर वोट दिया। जयंत ने भीम आर्मी वाले चंद्रशेखर आजाद उर्फ रावण को भी अपने साथ जोड़ा और इसका फायदा मिला दलित वोटों के रूप में। इसके अलावा विक्रम सैनी के खराब व्यवहार व उनके उटपटांग बयान देने वाले वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल होते रहे। बीजेपी के एक धड़े का मानना है कि अगर बीजेपी ने विक्रम सैनी की पत्नी राजकुमारी के अलावा किसी और को टिकट दिया होता तो यह चुनाव बीजेपी आसानी से जीत लेती।
खतौली की हार मुजफ्फरनगर के सांसद व केंद्रीय राज्यमंत्री डॉ. संजीव बालियान के लिए भी खतरे की घंटी है। उनके लोकसभा क्षेत्र की सरधना, चरथावल, बुढ़ाना व खतौली विधानसभा सीटें अब रालोद व सपा के पास हैं। केवल मुजफ्फरनगर सदर विधानसभा सीट ही बीजेपी के पास बची है। कुल मिलाकर यूपी का यह उपचुनाव बीजेपी के लिए न फायदे का साबित हुआ न नुकसान का। खतौली की सीट गंवाई तो रामपुर हासिल कर ली। मैनपुरी तो थी ही सपा के पास।
राष्ट्रपति भवन के मुगल गार्डन का नाम बदला, अब अमृत उद्यान के नाम से...
वायुसेना के दो लड़ाकू विमान मप्र के मुरैना में दुर्घटनाग्रस्त, एक...
अमेरिकी उद्योग का वित्तमंत्री से अनुरोध- प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष करों...
भारत आज दुनिया के हर बड़े मंच पर डंके की चोट पर अपनी बात कहता है: PM...
AMU में गणतंत्र दिवस के दिन ‘अल्लाहु अकबर' के नारे लगाने वाले छात्र...
अमर्त्य सेन पर विश्व भारती विवि की जमीन कब्जाने का आरोप, जाने पूरा...
दिल्लीवासियों को महापौर के लिए करना पड़ सकता है अभी और इंतजार
अडाणी समूह पर लगे आरोपों को लेकर कांग्रेस ने मोदी सरकार पर साधा...
उन्नाव दुष्कर्म मामला : हाई कोर्ट ने सेंगर की अंतरिम जमानत की अवधि...
पंजाब में 400 नये मोहल्ला क्लीनिक खुले, केजरीवाल बोले- एक और गारंटी...