नई दिल्ली/ टीम डिजिटल। राष्ट्रीय राजधानी में 1997 में हुए उपहार सिनेमा अग्निकांड में दोषी पाए गए रियल एस्टेट कारोबारी सुशील अंसल ने बुधवार को दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष कहा कि वेब सीरीज ‘ट्रायल बाई फायर' उनके व्यक्तित्व पर सीधा प्रहार करती है। सुशील अंसल ने वेब सीरीज ‘ट्रायल बाई फायर' की रिलीज पर रोक के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है। नेटफ्लिक्स पर 13 जनवरी को रिलीज होने वाली यह शृंखला उपहार कांड पर आधारित बताई जाती है। उपहार सिनेमा में 13 जून, 1997 को हिंदी फिल्म ‘बॉर्डर' के प्रदर्शन के दौरान भीषण आग लग गयी थी जिसमें 59 लोग मारे गये थे। अंसल ने अदालत से वेब सीरीज की रिलीज के खिलाफ व्यवस्था देने का आग्रह किया है। वेब सीरीज के टीजर को चार दिनों के भीतर 15 लाख बार देखा जा चुका है, जिससे इसके तत्काल प्रभाव का पता चलता है। रियल इस्टेट क्षेत्र के उद्यमी अंसल (83) ने यह मांग भी की है कि पुस्तक ‘ट्रायल बाई फायर-द ट्रैजिक टेल ऑफ द उपहार ट्रेजेडी' के वितरण और प्रकाशन पर रोक लगाई जाए। यह पुस्तक 2016 में आई थी।
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न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा ने डेढ़ घंटे से अधिक समय तक दलीलें सुनने के बाद इस मामले में आदेश सुरक्षित रख लिया। सुशील अंसल के वकील सिद्धार्थ अग्रवाल ने कहा, ‘‘ वे सीधे तौर पर मेरे व्यक्तित्व पर हमला करते हैं । वे सीधे मेरा नाम ले रहे हैं। मुझ पर इससे ज्यादा सीधा हमला नहीं हो सकता। वेब सीरीज में मेरे नाम का इस्तेमाल किया गया है। '' सुशील अंसल की याचिका का वेब सीरीज के निर्माताओं, नेटफ्लिक्स और पुस्तक के लेखकों - नीलम और शेखर कृष्णमूर्ति के वकील ने जोरदार विरोध किया। इस अग्निकांड में नीलम और शेखर कृष्णमूर्ति के दो बच्चों की मौत हो गयी थी। अंसल के वकील ने बताया कि यह पुस्तक अदालत की टिप्पणियों, निर्णय और यहां तक कि वादी (सुशील अंसल) के खिलाफ आरोपों को झुठलाती है। इस पर न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा ने टिप्पणी की कि फैसले की आलोचना माता-पिता की पीड़ा का परिणाम हो सकती है और इसमें मानहानि के दावे जैसा कुछ भी नहीं है।
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अंसल के वकील ने कहा, ‘‘ मैं 83 साल का एक बुजुर्ग हूं, जो सहना पड़ा, वह झेल चुका हूं। मुझे 'हत्यारा' और 'सामूहिक हत्यारा' कहा जा रहा है। यह वेब सीरीज मेरा, व्यवस्था का गलत चित्रण करने वाली है। इस सीरीज के सार्वजनिक होने तक हमारे पास अभी भी 36 घंटे हैं। मैं इस अदालत से अनुरोध करता हूं कि इसके रिलीज होने से पहले इसे देखें। '' अंसल के वकील ने कहा कि उन्हें चार जनवरी को वेब सीरीज के बारे में जानकारी मिली जब आधिकारिक रूप से इसका ट्रेलर जारी किया गया और यह जानकर हैरान रह गए कि 'सच्चे तथ्यों' पर आधारित होने का दावा करने वाली इस सीरीज ने उनके असली नाम का इस्तेमाल किया और उन्हें अपमानजनक तरीके से चित्रित किया। नेटफ्लिक्स एंटरटेनमेंट सर्विसेज इंडिया एलएलपी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव नायर ने तर्क दिया कि 2016 से सार्वजनिक डोमेन में रही यह पुस्तक अब एक फिल्म में बदल गई है और अदालतों ने हमेशा टीज़र के स्तर पर निषेधाज्ञा को हटा दिया है।
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अंसल ने अपनी याचिका में कहा कि उन्हें ‘कानूनी और सामाजिक दोनों तरह से सजा दी गयी है' और अग्निकांड में अपने दो बच्चों को खो देने वाले दंपती की लिखी किताब पर आधारित वेब सीरीज के रिलीज होने से उनकी साख को अपूरणीय क्षति पहुंचेगी तथा उनके निजता के अधिकार का हनन होगा। उच्चतम न्यायालय ने 2017 में उपहार अग्निकांड मामले में अंतिम निर्णय करते हुए सुशील अंसल और उनके भाई गोपाल अंसल (74) को 30-30 करोड़ रुपये का जुर्माना भरने का निर्देश दिया था। शीर्ष अदालत ने सुशील अंसल के जेल में बिताये समय पर विचार करते हुए उन्हें रिहा कर दिया था। बाद में अंसल बंधुओं और दो अन्य लोगों को उपहार सिनेमा अग्निकांड के मुकदमे के संबंध में साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ का दोषी ठहराया गया था।
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