नई दिल्ली/टीम डिजिटल। कोरोना संकट के कारण देश में लॉकडाउन जारी है। इस बीच देश कि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने नया श्रम कानून लागू कर दिया। इस कानून में कई बड़े बदलाव किए गये हैं। हालांकि इन बदलावों को लेकर विपक्षी पार्टियां सरकार पर हमलावर हैं।
क्या है नया कानून नए श्रम कानून संशोधन 2020 में यूपी समेत 7 बीजेपी शासित राज्यों में यह कानून लागू किया गया है। इस कानून में काम करने के घंटों को 8 की जगह 12 घंटे कर दिया गया है लेकिन यहां सरकार ने कहा है कि 12 घंटे का काम वर्कर अपनी इच्छा से कर सकता है।
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इसके अलावा इस कानून में अनुबंध के साथ नौकरी पर रखने वाले लोगों को हटाने, काम के दौरान हादसे का शिकार होने और समय पर पगार देने जैसे नियमों को छोड़ कर बाकी सभी नियमों को तीन साल के लिए टाल दिया गया है।
नए कानून के सभी नियम यूपी में मौजूद सभी राज्य और केंद्रीय इकाइयों पर लागू होंगे साथ ही इसके अंतर्गत 15 हजार कारखाने और 8 हजार प्रोडक्शन यूनिट्स आएंगी।
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ये हुए है नए बदलाव इस कानून में कुछ इस तरह से बदलाव किए हुए हैं। पॉइंटवार समझिए... -यूपी में अब केवल भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार (नियोजन तथा सेवा शर्तों का विनियमन) अधिनियम, 1996 लागू होगा -उद्द्योगों को कामगार क्षतिपूर्ति अधिनियम, 1923 और बंधुआ मजदूरी प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम 1976 का पालन करना होगा। -उद्योगों पर अब पारिश्रमिक भुगतान अधिनियम, 1936 की धारा 5 लागू होगी। -इस कानून में बाल मजदूरी और महिला मजदूरों से जुड़ें प्रावधान जारी रहेंगे। -इन कानूनों के अलावा बाकी सभी कानून अगले 1000 दिनों के लिए स्थगित किए गये हैं। -नए कानून में विवादों का निपटारा, मजदूरों का स्वास्थ्य, उनके काम करने से जुड़े कानून और काम की सुरक्षा को कानूनी रूप से समाप्त कर दिया गया है। -इतना ही नहीं इस कानून में ट्रेड यूनियन को मान्यता देने वाले कानून को भी खत्म कर दिया गया है। -कॉन्ट्रैक्ट पर काम करने वाले मजदूर और प्रवासी मजदूरों से जुड़े कानून भी खत्म कर दिए गये हैं। -उद्योगों में अगले तीन माह तक अपनी सुविधा को देखते हुए काम कराने की पूरी छुट दी गई है।
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सरकार के तर्क नए श्रम कानून में बदलाव को लेकर यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ ने तर्क दिया कि इस तरह से लॉकडाउन के बाद कामकाज में तेजी आएगी। राज्य में आर्थिक गतिविधियों को जोर मिलेगा और विदेशी कंपनियों को लुभाने का मौका मिलेगा। साथ ही लॉकडाउन के कारण कामकाज जिस तरह से ठप्प हो गया था उसे दोबारा तेजी के साथ करने में बल मिलेगा और इस व्यवस्था से अब श्रमिकों के हकों की रक्षा हो सकेगी।
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कानून का विरोध इस नए कानून को लेकर विरोध भी किया जा रहा है। जानकारों का कहना है कि यह श्रमिकों के मौलिक अधिकारों का हनन है। इस बारे में विरोध जताते हुए साथ राजनीतिक दलों ने राष्ट्रपति कोविंद को पत्र लिख कर कहा है कि नए संशोधन द्वारा श्रमिक कानून को कमजोर बना दिया गया है।
इस पत्र में कहा गया है कि कोरोना संकट के बीच जहां मजदूरों के लिए सरकार को काम करना चाहिए था तो वहीं नया श्रमिक कानून बना कर मजदूरों की जिंदगी को खतरे में डाला जा रहा है। लॉकडाउन के बाद प्रवासी मजदूरों की दशा पहले ही दयनीय है उसे और दुखद बनाया जा रहा है।
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