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कोरोना वैक्सीन के पूरी दुनिया तक पहुंचने से पहले राह में हैं कई मुश्किलें, एक नजर...

  • Updated on 7/25/2020

नई दिल्ली/टीम डिजिटल। उम्मीद है कि साल के अंत तक दुनिया को कोरोना वैक्सीन मिल सकेगी। हालांकि रूस इससे पहले भी वैक्सीन ला सकता है लेकिन ये वैक्सीन आ भी गई तो दुनिया को कैसे मिलेगी।

ये एक बहुत बड़ा सवाल है जो लगभग हर ऐसी बीमारी को लेकर पूछा जाना चाहिए जो मानव जीवन को तहस-नहस करने में लगी होती हैं। दरअसल, कोरोना महामारी जितनी ज्यादा खतरनाक है उतनी ही ज्यादा महंगी भी और इसलिए इसकी तैयार वैक्सीन को दुनिया के गरीब देश कैसे खरीदेंगे ये सबसे बड़ा सवाल है।

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भारत के लिए मुश्किल
लेकिन अगर हम भारत की यहां बात करें तो भी स्थिति गड़बड़ ही है। भारत में दूसरे देशों आने वाली दवाओं में निमोनिया की दवा मुख्य है जो आज भी भारत के हर राज्य के कोने तक नहीं पहुंच पाई है। जिसकी वजह है इस दवा की कीमत।

भारत सरकार इस वैक्सीन को 10 डॉलर प्रति बच्चे के हिसाब से ग्लोबल वैक्सीन एलायंस से ख़रीदती है। वहीँ, ये भी देखना होगा कि भारत में संघीय राज्य और राज्यों की मांगों के अनुरूप वैक्सीन का बंटवारा करना होगा नहीं तो सामाजिक मतभेद पैदा हो सकते हैं।

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ढूंढे जा रहे हैं विकल्प
वैक्सीन दुनिया को कैसे मिले इसे लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूरोपियन यूनियन ऐसे विकल्प भी खोज रहे हैं जिससे पेटेंट लाइसेंसिंग का एक बैंक बना लिया जाएं और वहां से वैक्सीन सभी देशों को दे दी जाए। हालांकि इस बारे में सहमती नहीं मिली है और मुश्किल भी लग रही है लेकिन फिर भी इस तरह से सोचना और उसे पूरा करना चुनौती बन सकता है।

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ये डर भी रहेगा
वैक्सीन आने के बाद अमीरों को, गरीबों को, ताकतवरों को वैक्सीन कैसे दी जाएगी ये बड़ा सवाल है क्योंकि ये तो तय है कि वैक्सीन आने के बाद सबसे पहले बड़े देशों और बड़े अमीरों के बीच ये डोज सबसे पहले दी जाएगी। जैसा कि रूस ने किया है। रूस ने अपने यहां वैक्सीन बनाई और उसकी डोज अमीरों, बड़े कारोबारियों और खबरों के अनुसार राष्ट्रपति पुतिन तक को दे दी है।
अगर इस तरह से हुआ तो भारत में दशा बेहतर दयनीय हो जाएगी। अगर सरकार सख्त नहीं हुई या सही और कड़े कदम नहीं उठाएं गये तो कालाबाजारी और माफिया सक्रिय हो सकते हैं।  

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सिर्फ एक पर भरोसा करना सही नहीं
वहीँ, इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च के पूर्व महानिदेशक को लगता है कि वैक्सीन को लेकर भारत को भी पूरी तरह निश्चिन्त नहीं बैठना चाहिए। उनका मानना है कि हो सकता है भारत में वैक्सीन की क्वालिटी सही न बन सके इसलिए भारत को सभी विकल्प देखने होंगे। वो कहते कि हो सकता है कि हमारी वैक्सीन अच्छी न निकले तो हमें पहले से ही दूसरे देशों की वैक्सीन पर नजर रखनी होगी नहीं तो हो सकता है वो दूसरे देशों के लिए उपलब्ध न रहे।

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