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देश में बढ़ती गरीबी का कौन है दोषी? क्या योजनाएं सुधार सकती हैं हालात? एक नजर...

  • Updated on 10/17/2020

नई दिल्ली/टीम डिजिटल। 17 अक्टूबर का दिन विश्व गरीबी उन्मूलन दिवस (International Day for the Eradication of Poverty) के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का उद्देश्य विश्व में अत्यधिक गरीबी को दूर करना है। लेकिन वर्तमान समय में देखें तो भारत की जनसंख्या जितनी तेजी से बढ़ रही है उसकी दोगुनी तेजी से यहां गरीबी बढ़ती जा रही है। 

जानकारों की माने तो गरीबी एक ऐसी समस्या है जो प्रगतिशील देशों में देखी जाती है और यह हमेशा रहने वाली एक स्तिथि है। हालांकि सरकार कई तरीकों से जैसे न्यूनतम वेतन में इजाफा करके, मनरेगा जैसी योजनाओं में जरूरी परिवर्तन ला कर और कई दूसरे संस्थानों में विस्तार करके रोजगार के मौके बढ़ाकर गरीबी को खत्म करने की कोशिश कर सकती है। 

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गरीबी राजनीतिक मुद्दा
लेकिन भारत में गरीबी को चुनावी मुद्दा बना कर राजनीतिक पार्टियां वोट बटोरती हैं और यह भी एक वजह है कि कोई भी सरकार यह नहीं चाहती कि गरीबी देश से कम हो। हालांकि कागजातों में भारत में गरीबी कम हो रही है। इस बारे में संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट की वर्ष 2006 से 2016 तक के सर्वे में भारत में 27.10 लोग गरीबी से बाहर निकले हैं, फिर भी इस समय करीब 37 करोड़ लोग गरीब हैं। 

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मुख्य कारण 
भारत में गरीबी बढ़ने के कई कारण हैं जैसे बढ़ती जनसंख्या, कमजोर कृषि, भ्रष्टाचार, रूढ़िवादी सोच, जातिवाद, बेरोजगारी,  अशिक्षा, बीमारियां, महामारी। वहीँ, इस बात को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि भारत एक कृषि प्रधान देश रहा है लेकिन मौजूदा समय में देश के किसानों के जो हालात हैं उन्हें देखते हुए यह कहना मुमकिन ही नहीं कि भारत में किसान गरीब नहीं हो सकता।  आज किसान ही सबसे ज्यादा गरीब हैं।

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कम हो सकती है गरीबी! 
सरकार ने गरीबी को कम करने के लिए कई योजनाएं शुरू की लेकिन उन योजनाओं से कितने लोगों को फायदा हुआ ये सही सही बताना मुश्किल है। जनकारों की माने तो भारत में गरीबी दूर करने के लिए ग्रामीण श्रम रोजगार गारंटी कार्यक्रम, प्रधानमंत्री जन धन योजना तथा न्यूनतम मजदूरी के लिए बने नियमों में बदलाव लाना होगा। साथ ही सरकारी संस्थानों को बढ़ाना होगा और उनमें रोजगार के अवसर बढ़ाने होंगे। 

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हो सकते हैं उपाय 
इसके साथ ही सरकार को संस्थानों को बड़े कारोबारियों को नहीं सौंपना चाहिए और न ही निजीकरण करना चाहिए। हमारे देश में लॉकडाउन के दौरान जो हालात रहे वो भी गरीबी के जिम्मेदार हैं लेकिन यह सरकार के हाथ में है कि वो इन अवसरों पर मजदूर वर्ग और बेरोजगार वर्ग पर अधिक काम करे। जबकि देखा तो यही जा रहा है कि सरकार सिर्फ वोट और सत्ता के लिए बयानबाजी कर रही है और जमीनी तौर पर उसका लोगों से उनकी समस्याओं और गरीब जनता से कोई मतलब नहीं है।

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