Tuesday, May 30, 2023
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who is responsible for violence in delhi

ट्रंप के भारत दौरे पर क्यों भड़की दिल्ली में हिंसा, कौन है जिम्मेदार?

  • Updated on 2/25/2020

नई दिल्ली/कुमार आलोक भास्कर। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) अपने भारत दौरे के अंतिम चरण में आज दिल्ली (Delhi) में है। इस बीच राजधानी के एक इलाके में हिंसा का नंगा नाच होता है जिसमें 10 लोगों की मौत हो जाती है। इसमें 1 हेड कांस्टेबल भी शामिल है। सवाल उठता है कि राष्ट्रपति ट्रंप के भारत दौरे और हिंसा के भड़कने के तार आपस में जुड़ते है या नहीं? यह बहुत ही गंभीर सवाल है जिसका जवाब आज देश जानना चाहता है।


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हिंसा की टाइमिंग को लेकर हो रही है बहस
दिल्ली में हिंसा की टाइमिंग को लेकर सवाल उठाये जा रहे हैं तो गलत कहीं से नहीं है। यह सवाल उठना इसलिये लाजिमी है कि जब भी विदेशी मेहमान अपने देश पधारते हैं तो इंटरनेशनल मीडिया भी कवर करने पहुंचती है। यदि वह मेहमान दुनिया के सबसे शक्तिशाली राष्ट्रपति हो तो विरोध होना स्वाभाविक नहीं कहा जा सकता है। क्या CAA, NRC का विरोध करते-करते देश की प्रतिष्ठा को आंच पहुंचाने की कोशिश हुई है? दूसरा सवाल इस हिंसा के पीछे कौन लोग शामिल है जो पर्दे के पीछे से इसे संचालित कर रहा है? तीसरा सवाल केंद्र सरकार समय रहते खुफिया जानकारी हासिल करने में बार-बार क्यों नाकाम हो रही है? 

a Violence in Delhi

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बीजेपी ने शाहीन बाग पर उठाये सवाल
एक बात और जो लोगों के जेहन में बार-बार उठता है कि मोदी सरकार के मंत्रियों से लेकर बीजेपी के नेताओं ने शाहीन बाग जैसे आंदोलन को किसी गहरे साजिश का हिस्सा बताया है तो सबूत देश के सामने पेश करने में अब तक क्यों सफल नहीं हुई है। इसका मतलब यह माना जाए कि पीएम नरेंद्र मोदी या गृह मंत्री अमित शाह जो कहते है कि शाहीन बाग एक प्रयोग है वो हवा में तीर चलाने जैसा मात्र है।


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अरविंद केजरीवाल ने गृह मंत्री को दी चुनौती
इससे पहले दिल्ली विधानसभा चुनाव के समय बीजेपी पर आप पार्टी ने आरोप लगाया था कि गृह मंत्री यदि चाहें तो 1 घंटे में शाहीन बाग खाली कराया जा सकता है। इस बाबत अरविंद केजरीवाल ने बड़ा बयान भी दिया था। उन्होंने तो भविष्यवाणी की थी कि 11 फरवरी के बाद शाहीन बाग आंदोलन खत्म हो जाएगा। अरविंद केजरीवाल के इस बयान से यह भी मतलब निकाला गया कि बीजेपी जानबूझकर शाहीन बाग को बनाए रखना चाहती है। ताकि वोटों का ध्रुवीकरण किया जा सके। 

 

Public agitation in delhi
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दिल्ली विधानसभा चुनाव में फिर से केजरीवाल को मिली सफलता
लेकिन चुनाव परिणाम ने बता दिया कि शाहीन बाग आंदोलन का फायदा उठाने में आप पार्टी ने बीजेपी को मात दे दी है। अरविंद केजरीवाल ने 'आप' के प्रयोगशाला से वो जिन निकाला जिससे बीजेपी हताश और लाचार नजर आई। अरविंद केजरीवाल ने CAA को लेकर मोदी सरकार के विरोध में आवाज बुलंद की तो वहीं उन्होंने शाहीन बाग आंदोलन से दूरी बनाकर सधी चाल चली। साथ ही उन्होंने हनुमान चालीसा पढ़कर वोट के एक बड़े तबके को भी अपने पाले में लाने की भरसक सफलता तो हासिल कर ही ली। इसमें कोई दो राय नहीं है।
        
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केजरीवाल ने शाहीन बाग से बनाई दूरी
धरना कुमार के नाम से चर्चा में रहे अरविंद केजरीवाल के अब तक शाहीन बाग आंदोलन के प्रदर्शनकारी महिलाओं से न मिलने पर भी सवाल उठते रहे हैं। उन्होंने साफ-साफ कहा कि चूंकि CAA केंद्र सरकार का मुद्दा है तो ऐसे में शाहीन बाग के प्रदर्शनकारी से मिलना उचित नहीं होगा। लेकिन भले ही CAA उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं हो लेकिन शाहीन बाग तो दिल्ली में ही है। 

A Car damage in agitation

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विरोध- प्रदर्शन का बदल गया है तरीका
देश के किसी नागरिक या राजनैतिक दलों को केंद्र सरकार या राज्य सरकार से असहमति जताने का अधिकार प्राप्त है। लेकिन हाल के दिनों में विरोध का Nature बदलता जा रहा है। इसमें 2 तरह के विरोध को आप शामिल कर सकते है। एक तो वैसे समूह है जो खुलकर विरोध करते हैं। जिसकी मंशा सिर्फ सरकार से अपना नैतिक विरोध जताने का होता है। जिसमें ऐसे लोग या समूह अपना शांतिपूर्वक प्रदर्शन या आंदोलन चलाता है। लेकिन दूसरे तरह का विरोध ज्यादा खतरनाक है। उसमें न सिर्फ विरोध- प्रदर्शन को परोक्ष तरीके से लंबा खींचने की कोशिश की जाती है बल्कि जैसे छद्म धर्मनिरपेक्षता की चर्चा होती है ठीक वैसे ही छद्म विरोध भी देखने को मिल रहा है। यह छद्म विरोध ज्यादा खतरनाक है जिससे बचने की कोशिश होनी चाहिये।

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Hate Speech देने वाले नेताओं की है लंबी लिस्ट
एक तरफ बीजेपी नेता कपिल मिश्रा को हिंसा भड़काने के लिये जिम्मेदार ठहराये जाने की कोशिश होती है। लेकिन एक लंबी लिस्ट है ऐसे नेताओं की जिसने लोगों को भड़काने के लिये कई उत्तेजक बयान दिये है। इसमें वारिस पठान से लेकर सोनिया गांधी, औवेसी बंधु, अनुराग ठाकुर, प्रवेश वर्मा जैसे नेता शामिल है। तो वहीं अरविंद केजरीवाल के नए किस्म की राजनीति भी आजकल चर्चा का विषय बना हुआ है। अरविंद केजरीवाल गृह मंत्री अमित शाह के साथ बैठकर दिल्ली में भड़की हिंसा की निंदा करते हैं। तो वहां से निकलते ही अपने विधायकों को लेकर राजघाट का रुख करके शांति की कामना करते हैं। 

Amit sah and arvind kejriwal in meeting

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सोनिया गांधी ने भारत बचाओ रैली में जब कहा...
लेकिन जब पिछले साल 14 दिसंबर को दिल्ली में भारत बचाओ रैली को संबोधित करते हुए कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्षा सोनिया गांधी कहती है- 'किसी भी व्यक्ति,समाज,देश की जिंदगी में कभी-कभी ऐसा वक्त आता है कि उसे इस पार या उस पार का फैसला लेना होता है'। अगले ही दिन शाहीन बाग में महिलाएं बीचोबीच रोड को ब्लॉक करते हुए धरने पर बैठ जाती है। फिर देखते-देखते शाहीन बाग का प्रदर्शन देश और दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचता है। वैसे देश भर में CAA, NRC को लेकर हिंसक प्रदर्शन हुए है। पिछले साल शुरु हुए हिंसा का दौर बीच-बीच में थमता है तो फिर उठ खड़ा होता है।

Arvind kejriwal in and Manish Sisodia in rajghat

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महज औपचारिकता निभाना बंद करें राजनीतिक दल 
यह तो साफ है कि CAA, NRC को लेकर देश की विपक्षी पार्टियों ने खुलकर विरोध जताया है। सत्ता पक्ष और विपक्षी पार्टी दोनों तरफ से Hate Speech देने में महारत हासिल कर चुकी है। लेकिन सिर्फ हिंसा पर औपचारिकता पूरी करने से काम नहीं चलेगा। सभी राजनीतिक दलों को हिंसा को प्रभावी रोक लगाने के लिये एकजुट होकर हरसंभव प्रयास करना चाहिये। कुछ देर के लिये राजनीतिक नफा- नुकसान की बात करना बंद करके दिल्ली और देश में स्थायी शांति लाने के गंभीर प्रयास करना चाहिये। हालांकि लाशों पर राजनीति करने और विवादित मुद्दों में आम आदमी को घसीटकर लाने की घृणित राजनीति का एक लंबा इतिहास इस देश ने देखा है। लेकिन यह मानकर चलिये कि देश और दिल्ली की जनता सब देख रही है कौन हिंसा को समर्थन और कौन विरोध में खड़ा है। खासकरके डोनाल्ड ट्रंप के दौरे के समय इस बेवजह विरोध और हिंसा से बचना चाहिये था। लेकिन अफसोस यह नहीं हो सका।

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