Friday, Sep 22, 2023
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chhath puja 2022: क्यों मनाया जाता है छठ पर्व, जानिए इन लोकथाओं के जरिए

  • Updated on 10/28/2022

नई दिल्ली/टीम डिजिटल। प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष कि षष्ठी तिथि को छठ पर्व मनाया जाता है। मूलतः सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे छठ कहा गया है। यह पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है। पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में। चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जानेवाले छठ पर्व को चैती छठ व कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले पर्व को कार्तिकी छठ कहा जाता है।

यह पर्व नहाय- खाए से आरंभ होता है और चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही इस पर्व का समापन  हो जाता है यानि  छठ पूजा चार दिवसीय उत्सव है। इस दौरान व्रतधारी लगातार 36 घंटे का व्रत रखते हैं। इस दौरान वे पानी भी ग्रहण नहीं करते। इस लोकआस्था के पर्व से बहुत सी लोकथाएं जुड़ी हैं, आइए जानते हैं क्या हैं ये लोक कथाएं- 

 भगवान राम ने की थी सूर्यदेव की आराधना
लंका पर विजय पाने के बाद रामराज्य की स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को भगवान राम और माता सीता ने उपवास किया और सूर्यदेव की पूजा की। सप्तमी को सूर्योदय के वक्त फिर से अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था। यही परंपरा अब तक चली आ रही है।

राजा प्रियंवद व मालिनी की कहानी
इस महापर्व के पीछे भी कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। यह त्योहार विशेष रूप से बिहार, पूर्वांचल, झारखंड आदि क्षेत्रों में विशेष धूमधाम के साथ मनाया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, राजा प्रियंवद को कोई संतान नहीं थी। तब महर्षि कश्यप ने पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ कराकर प्रियंवद की पत्नी मालिनी को यज्ञ आहुति के लिए बनाई गई खीर दी।

इससे उन्हें पुत्र हुआ, लेकिन वह मृत पैदा हुआ। प्रियंवद पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। उसी वक्त भगवान की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुई और उन्होंने कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूं। राजन तुम मेरी पूजा करो और इसके लिए दूसरों को भी प्रेरित करो। राजा ने पुत्र इच्छा से देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी।
 

कर्ण ने शुरू की सूर्य देव की पूजा
एक अन्य कथा यह भी है कि छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य देव की पूजा शुरू की। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे। वह प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही परंपरा प्रचलित है।

छठ पर्व से पांडवों को मिला राजपाट
छठ पर्व के बारे में एक कथा और भी है। इसके अनुसार जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए, तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा। उनकी मनोकामनाएं पूरी हुई और पांडवों को राजपाट वापस मिल गया। लोक परंपरा के अनुसार, सूर्यदेव और छठी मईया का संबंध भाई-बहन का है। इसलिए छठ के मौके पर सूर्य की आराधना फलदायी मानी गई है।

छठ पूजा प्रकृति प्रेम करना भी सिखाता है
छठ महापर्व के अनुष्ठान के दौरान हरे कच्चे बास की बहंगी, मिट्टी का चूल्हा, प्रकृति प्रदत फल, ईख सहित अन्य वस्तुओं के उपयोग का विधान है, जो आमजनों को प्रकृति की ओर लौट चलने के लिए प्रेरित करता है।

जीव-संरक्षण 
छठ पूजा के अनुष्ठान के दौरान गाया जाने वाला पारंपरिक गीत केरवा जे फरेला घवध से ओहपर सुग्गा मंडऱाय, सुगवा जे मरवो धनुख से सुग्गा जइहें मुरझाए..,रोवेली वियोग से, आदित्य होख ना सहाय.., जैसे गीत इस बात को दर्शाते हैं कि लोग पशु-पक्षियों के संरक्षण की याचना कर उनके अस्तित्व को कायम रखना चाहते हैं।

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