नई दिल्ली। अनामिका सिंह। इंसान हमेशा से ही हर जीव को अपने इशारों पर चलाने की इच्छा रखता है। जिसके लिए वो घरों में कई प्रकार के पालतू जानवर पालता है और उनकी ट्रेंनिंग करता है। ये शिक्षा कुछ जीवों जैसे कुत्ता, बिल्ली, घोड़ा, गधा व तोते और मकाओ जैसे पक्षियों के लिए तो कारगर सिद्घ होती है लेकिन बड़े वन्यजीवों के लिए ये ट्रेनिंग पर्याप्त नहीं होती। यही वजह है कि लोग शेर, हाथी, बाघ या अन्य बड़े जीवों को घर में पालने की बजाय ज़ू में जाकर देखना ज्यादा पसंद करते हैं। लेकिन कभी आपने सोचा कि इन बड़े जीवों को हैंडल करने के लिए कौन सेवाएं देता है और किस तरह वो प्रत्यक्ष रूप से इन वन्यजीवों के साथ जुड़ा होता है? इन बेजुबान वन्यजीवों की खुशी, गम व उदासी से लेकर बीमारी तक को कैसे समझता होगा? तो आइए आज वल्र्ड वाइल्डलाइफ एक्ट डे पर हम इन्हीं ज़ू कीपर्स के बारे में बात करते हैं जो एक्ट के दायरे में रहकर वन्यजीवों के जीवन की सिर्फ रक्षा ही नहीं करते बल्कि उनकी जरूरतों का भी पूरी तरह ख्याल रखते हैं। हमने इसे लेकर बात की राष्ट्रीय प्राणी उद्यान यानि दिल्ली चिडिय़ाघर के ज़ू कीपर्स से, जिन्होंने अपना पूरा जीवन इन वन्यजीवों के नाम समर्पित कर दिया है।
नाम लेते ही दौड़ पड़ते हैं विजय-1 व विजय--2 : जू कीपर रामकेश सुबह जैसे ही मैं चिडिय़ाघर में आता हूं और सफेद बाघ विजय-1 व विजय-2 का नाम लेकर पुकारता हूं तो वो बरबस दौड़ लगा देते हैं। दुनिया के लिए बेशक ये खूंखार वन्यजीव होंगे लेकिन हम तो अपने बच्चे की तरह इनकी देखभाल बीते 7-8 साल से कर रहा हूं। मैं जब सुबह इनके बाडे में आता हूं तो सबसे पहले उसका निरीक्षण करता हूं कि कहीं बाड़ा टूटा तो नहीं या बाड़े में कोई ऐसी वस्तु तो नहीं जिससे सफेद बाघ को नुकसान पहुंच सके। उसके बाद मैं सफेद बाघों के मूड की पूरी जानकारी लेता हूं कि वो कहीं गुस्से में तो नहीं। यदि वो गुस्से में होते हैं तो उन्हें शांत करवाने का प्रयास किया जाता है। अगर सुस्त दिखाई देता है विजय तो तुरंत चिडिय़ाघर के डॉक्टरों से संपर्क कर उसका ईलाज करवाता हूं। विजय-2 गर्मियों में 10 किलो व सर्दियों में 12 किलो मीट खाता है। वहीं उनके डाइजेशन के लिए शुक्रवार को फास्ट रखवाया जाता है ताकि पेट ठीक रहे। सफेद बाघों को एक्सरसाइज भी करवाई जाती है ताकि वो मोटे व सुस्त ना हो जाएं। इसके लिए बोरियों लटकाया जाता है और उसे दूर फेंका जाता है जिसे वो उठाकर लाते हैं। साथ ही लकडिय़ों से खेलना भी इन्हें काफी पसंद है। जब मैं छोटा था तो चिडिय़ाघर धूमने आता था उसी दौरान मेरी रूचि बनी कि मैं बड़ा होकर जू कीपर बनूंगा और बीते 19 साल से मैं इन वन्यजीवों की सेवा कर रहा हूं। वैसे विजय-1 यही पैदा हुआ था इसलिए वो ज्यादा स्नेह करता है जबकि विजय-2 लखनऊ से आया है। गर्मियों में फव्वारे से नहाना इन्हें काफी पसंद है और लकडिय़ों की बॉल से खेलना। विजय-1 के दो बार बच्चे भी हो चुके हैं और हो सकता है कि जल्द ही विजय-2 की तरफ से खुशखबरी भी मिले।
सुबह पूरे चिडिय़ाघर का भ्रमण करते हैं सभी हाथी : जू कीपर ओमप्रकाश मैं 8-9 साल से चिडिय़ाघर में इंडियन व अफ्रीकन हाथियों की देखभाल कर रहा हूं। हाथी एक बड़ा जानवर होने के साथ ही काफी बड़ी मात्रा में खाना भी खाता है। इसलिए सुबह 5 बजे उठकर इन्हें बेड़े से बाहर निकाला जाता है। इस दौरान पूरे चिडिय़ाघर परिसर का इनसे 2 चक्कर लगवाया जाता है जोकि 8-9 किलोमीटर का होता है। बेड़े में बंद करने के बाद इन्हें हरा चारा, पत्ते, केले प्रत्येक हाथी के हिसाब से 250 किलो के करीब आता है। दो हाथी भारतीय हैं जिनमें नर का नाम हीरागज और मादा का नाम राजलक्ष्मी है, जबकि अफ्रीकन हाथी का नाम शंकर है। ये तीनों कीचड़ में खूब खेलना पसंद करते हैं अपने ऊपर मिट्टी डालते हैं। इनके गंदे होने के बाद शाम को इन्हें मैं रोज नहलाकर साफ करता हूं। ये खाने में खिचड़ी भी बेहद पसंद करते हैं, करीब 5 किलो हरी मूंग की दाल की खिचड़ी खाते हैं। इसके अलावा गन्ना, गुड और आंवला भी समय-समय पर इन्हें खाने को दिया जाता है। मैंने गोवाहटी जाकर स्पेशली हाथी को कैसे रखा जाता है और उसका नेचर कैसे पहचाना जा सकता है इसकी ट्रेनिंग लेकर आया हूं। हाथी जब मस्ती में आता है तो उसे कंट्रोल करना बेहद मुश्किल हो जाता है लेकिन मुझे उसके दोनों गाल व बैक फुले होने पर इसकी जानकारी हो जाती है। तब हम भी दूर से इसकी सफाई करते हैं। हालांकि बात अगर गुस्सैल की करें तो वो अफ्रीकन हाथी ज्यादा होता है।
कृष्ण हिरन जब उठाता है पूंछ तो होती है तगड़ी लड़ाई : जू कीपर राममनोहर मैं कृष्ण हिरन, ताडबिलाव, लोमड़ी, गिदड़ व जंगल कैट की देखभाल करता हूं। लेकिन मुझे इनमें सबसे चैलेंजिंग कृष्ण हिरन लगता है। ये बेहद फुर्तीले होते हैं और कई झुंडों में रहते हैं। झुंड का मुखिया सबसे अधिक काले रंग का हिरन होता है और वो बार-बार पूंछ उठाकर अन्य नर हिरनों को चैलेंज करता रहता है। यदि किसी अन्य नर ने अपनी पूंछ ऊपर उठा दी तो मतलब वो लडऩे के लिए तैयार है और ऐसी परिस्थिति में इतनी तगड़ी लड़ाई होती है कि कीपर्स को संभालने के लिए कई यत्न करने पड़ते हैं। कहीं नर आपस में भीड़े ना इसीलिए इन्हें अलग-अगल खाना दिया जाता है। इन्हें पिलखन, पीपल व बड़ के पत्तों को दिन में 3 बार खाने के लिए दिया जाता है। कुल 69 हिरन हैं जिनमें 15 बच्चे, 29 मादा व 25 नर हैं। इन्हें फव्वारे के पानी में नहाना पसंद है इसलिए इनके बाड़े में जगह-जगह फव्वारे लगाए गए हैं। मैं तकरीबन 25 सालों से चिडिय़ाघर में विभिन्न जानवरों की कीपिंग कर चुका हूं, मुझे बचपन से ही वन्यजीवों के बारे में जानने का काफी शौक था और मैंने इसी को अपना रोजगार भी बना लिया। बहुत संतुष्टि मिलती है मुझे इस काम से।
तीन पीढिय़ों से हैं चिडिय़ाघर में कीपर : जू कीपर रविंद्र कुमार मेरे दादाजी ने सबसे पहले चिडिय़ाघर में बाघ व शेर की देखभाल करने का काम शुरू किया था, उसके बाद पिताजी ने भी अपनी सेवाएं दिल्ली चिडिय़ाघर को दीं। उनके बाद मैं लगातार तीसरी पीढ़ी से हूं जो चिडिय़ाघर को अपनी सेवाएं दे रहा हूं। अच्छा लगता है इन बेजुबान जानवरों को पालना, उन्हें समझना और कई प्रयोग भी उनके लिए करता रहता हूं ताकि वो व्यस्त रहें। आजकल मैं बबून का कीपर हूं। चिंपाजी रीटा के बाड़े में ही बबून को जगह दी गई है क्योंकि ये भी हमेशा ऊपर की तरफ चढ़ते हैं। मेरे पास नर शेरा व मादा दीया हैं जिनके बच्चे बजरंगी है इसके अलावा दो ओर बच्चे चिंटू व सुषमा हैं। तीनों बच्चों को बिजी रखने के लिए मैंने नारियल के खाली खोलों में खाने का सामान भरकर रखा है और कई वस्तुएं भी जिनसे वो खेलते रहते हैं। मैं रोजाना जानवर के पास आकर ये चैक करता हूं कि कहीं उसने कोई खाना छोड़ा तो नहीं है क्योंकि अगर उसने खाना छोड़ा है तो मतलब वो काफी बीमार है। इसके अलावा मलमूत्र की भी जांच की जाती है, इससे भी इनकी तबीयत का आंकलन किया जाता है। बाड़े में रोजाना पानी लगाया जाता है बाड़े को चैक किया जाता है। खाने में बबून सीजन के अनुसार फल के अलावा खीर व ब्रेड खाना बेहद पसंद करते हैं। इन्हें 3 केले रोजाना खाना पसंद है और ये झूले पर झूलते व रस्सियों पर लटकते हैं। ये चील व कौए को देखकर काफी एग्रेसिव हो जाते हैं। इसके अलावा मैं नीलगाय, बोनट मकैक, शेरपूंछ बंदर व पाड़ा हिरन की भी देखभाल करता हूं। शेरपूंछ बंदर खोदकर कीड़े-मकौड़े खाने का शौकीन होता है, इसके अलावा अंडे और ड्राईफ्रूट्स भी पसंद है।
बहुत चैलेंजिंग हैं पक्षियों की कीपिंग : जू कीपर सुरेश कुमार त्रिपाठी लोगों को लगता है कि पक्षियों को संभालना आसान है लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है ये एक चैलेंजिंग काम है क्योंकि इन मासूमों पर मौसम का प्रभाव सबसे पहले पड़ता है, इसीलिए इनका बेहद ख्याल रखा जाता है। मैं भारतीय मोर, सफेद मोर, रूदरिंग, प्रोग्रेड, मूटेशन, रेड जिंगल फोवोल, फाकता, काला तीतर, भूरा तीतर इत्यादि की देख-रेख कर रहा हूं। पक्षियों को देखते हुए मुझे 5 साल हो चुके हैं लेकिन शायद ही कोई ऐसा जानवर हो जिसकी मैंने देखभाल ना की हो। कुल 28 साल मुझे दिल्ली चिडिय़ाघर में काम करते हुए हो चुकी है। सबसे अच्छा लगता यह है कि हम इन बेजुबानों के काम आ रहे हैं इनके इशारों को समझ रहे हैं। मनुष्य तो अपनी तकलीफों को बता देता है लेकिन इन्हें समझना बहुत अच्छा लगता है। कई बार मेरी अधिकारियों से भी कहासूनी हो जाती है क्योंकि मैं जानवरों के खाने के साथ समझौता नहीं करता। अभी पक्षियों के लिए सेब, मौसमी, संतरा, केला, चने, मूंगफली सहित 15 प्रकार का खाना आता है। ठंडियों में इन्हें ज्यादा मदद की जरूरत होती है इसलिए इनके बाडे में पुआल लगाई जाती है ताकि ये उसके बीच अपने शरीर को गर्मी दे सकें। जबकि लू से बचाने के लिए गर्मियों में बाडों के ऊपर कपड़ा लगाया जाता है। इनके अंडों को बचाना भी अपने आपमें बड़ा चैलेंज होता है, चूहे काफी इन्हें परेशान करते हैं।
सुरक्षा के साथ करना होता है जानवरों का ट्रीटमेंट : डॉ. विकास कुमार जयसवाल चिडिय़ाघर में 4 बंगाल टाइगर हैं, जिनके नाम अदिति, सिद्धि, बरखा व नर करन है। इनके स्वास्थ्य की देखभाल पूरी सुरक्षा के साथ की जाती है। हम हरेक 3 व 6 महीने पर ब्लड एकत्र कर डाइग्नोसिस करते हैं। रेगुलर डीवार्मिंग के लिए फिजिकल एग्जामिनेशन होता है व 4 महीने पर कीड़े की दवाई दी जाती है। अगर किसी जानवर में कीड़ा दिखता है तो तुरंत दवा शुरू कर दी जाती है। इनका यूरिन एकत्र किया जाता है, उससे बीमारी का पता चल पाता है। हरेक जानवर के खाना खाने की रिपोर्ट रोजाना दी जाती है। पहले दूर से ईलाज किया जाता है यदि परेशानी दूर नहीं होती तो क्लोज आब्र्जवेशन किया जाता है। दिल्ली का मौसम अचानक बदलता है इसलिए हम हरेक मौसम के लिए पहले से ही तैयारियां करते हैं गर्मियों में कूलर व एग्जास्ट फैन लगाए गए हैं। जबकि सर्दियों में हीटर के अलावा बाडे के चारों ओर टाट पट्टी लगाई जाती है ताकि हवा का मूवमेंट कम से कम हो। वन्यजीवों के कंफर्ट लेवल को चैक कर ही चिकित्सक बाडे में जू कीपर्स के साथ प्रवेश करते हैं। कई बार रातभर जानवरों का इलाज करने के लिए इंतजार करना पड़ता है ये सबसे बड़ा चैलेंज है क्योंकि धैर्य होना इस फील्ड में काफी जरूरी है। वाइल्ड लाइफ डॉक्टर होना अपने लिए गर्व करने की बात है।
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