नई दिल्ली/नेशनल ब्यूरो। बिहार के ताजा सियासी घटनाक्रम ने न केवल बिहार बल्कि देश की सियासत पर भी गहरा असर डाला है। जदयू के अलग होने से जहां बिहार की सत्ता से भाजपा को बाहर होना पड़ा है, वहीं उसकी हनक को भी गहरी चोट पहुंची है। इसके साथ ही संसद में भी सियासी गणित बिगड़ गई है, जिससे आने वाले दिनों में उसकी चुनौती बढ़ सकती है।
महागठबंधन की सरकार बनने के बाद JDU ने कहा- ED और CBI से नहीं डरते संसद के निचले सदन, लोकसभा में तो भाजपा पूर्ण बहुमत में है, इसलिए जदयू के 16 सांसदों के रहने न रहने से उसे फर्क नहीं पड़ता। मगर, उच्च सदन, राज्यसभा में भाजपा को अभी भी गठबंधन और क्षेत्रीय दलों के सहयोग की जरूरत है। 245 सदस्यीय राज्यसभा में भाजपा के पास अभी केवल 91 सदस्य हैं। उसे विभिन्न दलों के आठ सदस्यों के साथ दो निर्दलीयों का समर्थन प्राप्त है। जबकि बहुमत के लिए 123 सदस्य चाहिए। ऐसे में उसे किसी भी विधेयक को पारित कराने के लिए गठबंधन और क्षेत्रीय दलों से सहयोग लेने की मजबूरी है। बिहार में जदयू के साथ गठबंधन में रह कर सरकार चलाते हुए भाजपा को राज्यसभा में जदयू का समर्थन मिलता रहा, लेकिन अब गठबंधन टूट चुका है। राज्यसभा में जदयू के पांच सदस्य हैं, जिसमें उपसभापति हरिवंश भी शामिल हैं। ये पांच सदस्य और कम हो जाएंगे। इससे भाजपा बहुमत से और दूर हो जाएगी।
नीतीश की महागठबंधन में वापसी से CM स्टालिन और महबूबा मुफ्ती भी उत्साहित उच्च सदन में आंकड़ों के इस बदलाव के चलते भाजपा की आगे की चुनौती बढ़ गई हैं। भाजपा को उच्च सदन में कोई भी विधेयक पारित कराने के लिए अब पूरी तरह से बीजद और वाईएसआर पर निर्भर रहना होगा, जिनके पास क्रमश: नौ-नौ सदस्य हैं। इन दोनों दलों ने मॉनसून सत्र के दौरान कई अहम विधेयकों को पारित कराने में भाजपा का सहयोग किया भी था। लेकिन 2024 में भाजपा को ओडिशा में जहां बीजद के खिलाफ चुनाव मैदान में उतरना है, वहीं आंध्र प्रदेश में वाईएसआर से उसे लडऩा है। ऐसे में दोनों क्षेत्रीय दल तभी तक भाजपा का साथ देंगे, जब तक उनके हित पूरे हो रहे हैं। राज्यसभा की अभी 8 सीटें खाली हैं। अगले कुछ महीनों में इन पर नियुक्तियां होनी है, लेकिन तब भी भाजपा बहुमत से दूर ही रहेगी।
उपसभापति हरिवंश को लेकर उहापोह जदयू से राज्यसभा सांसद हरिवंश फिलवक्त उच्च सदन में उपसभापति का दायित्व निभा रहे हैं। कायदे से तो भाजपा से गठबंधन टूटने के साथ ही हरिवंश को उपसभापति पद से इस्तीफा दे देना चाहिए। लेकिन अभी उन्हें लेकर उहापोह की स्थिति बनी हुई है। हरिवंश अपनी पार्टी के साथ जाएंगे या फिर पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी की तर्ज पर पद छोडऩे से इंकार करेंगे, यह देखना होगा। कहा यह भी जा रहा है कि जदयू को झटका देने के लिए भाजपा आरसीपी सिंह की तरह हरिवंश को भी अपने पाले में खींचने की रणनीति पर काम कर रही है। हालांकि जदयू नेताओं का दावा है कि हरिवंश पूरी निष्ठा के साथ नीतीश कुमार के साथ हैं।
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