Sunday, Jun 04, 2023
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भाजपा नेता शाहनवाज हुसैन के खिलाफ FIR दर्ज करने का आदेश हाई कोर्ट ने किया रद्द 

  • Updated on 3/6/2023

नई दिल्ली/ टीम डिजिटल। दिल्ली उच्च न्यायालय ने कथित बलात्कार एवं विभिन्न मामलों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेता शाहनवाज हुसैन और उनके भाई के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने के निचली अदालत के आदेश को रद्द कर दिया है और उसे (निचली अदालत को) मामले पर नये सिरे से विचार करने का निर्देश दिया है। न्यायमूर्ति अमित महाजन ने कहा कि निचली अदालत को, प्राथमिकी दर्ज करने से इनकार करने वाले मजिस्ट्रेट अदालत के आदेश को खारिज करने से पहले संदिग्ध आरोपियों को अपना पक्ष रखने का अवसर देना चाहिए था। 

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अदालत ने हुसैन बंधुओं की याचिका पर अपने हालिया आदेश में कहा, “इकत्तीस मई 2022 के विवादित निर्णय को रद्द किया जाता है। आपराधिक संशोधन याचिका संख्या 254/2018 को बहाल किया जाता है और याचिकाकर्ताओं को सुनवाई का अवसर देने के बाद मामले को नये सिरे से निर्णय के लिए संबंधित अदालत के पास लौटाया जाता है।'' मौजूदा मामले में शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया है कि शाहबाज़ हुसैन ने उसके साथ बलात्कार किया था और उससे मामले को उजागर न करने को कहा था। शिकायतकर्ता ने दावा किया कि यद्यपि शाहबाज़ हुसैन ने उससे शादी करने का वादा किया था, लेकिन बाद में उसे पता चला कि वह पहले से ही शादीशुदा हैं। 

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शिकायतकर्ता ने एक गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) चलाने का दावा किया है। शिकायत में यह भी आरोप लगाया गया था कि शिकायतकर्ता पर ‘‘गोमांस खाने और अपना धर्म बदलने एवं इस्लाम अपनाने के लिए भी दबाव डाला गया था।'' शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया है कि उसका हुसैन के साथ निकाह हो गया था, लेकिन बाद में भाजपा नेता तीन बार तलाक बोलकर मौके से भाग गये थे। शिकायतकर्ता का यह भी दावा है कि पूर्व केंद्रीय मंत्री शाहनवाज हुसैन ने अपने भाई शाहबाज के साथ साजिश रची थी। मजिस्ट्रेट अदालत ने महिला की शिकायत के आधार पर प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश देने से यह कहते हुए इनकार कर दिया था कि उसने संज्ञेय अपराध का खुलासा नहीं किया है। 

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हालांकि, निचली अदालत ने एक पुनरीक्षण याचिका में, मंदिर मार्ग पुलिस थाने के प्रभारी को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की विभिन्न धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया था। उच्च न्यायालय के समक्ष याचिकाकर्ताओं के वकील ने दलील दी थी कि उनके खिलाफ आरोपों में किसी भी संज्ञेय अपराध के होने का खुलासा नहीं किया गया है और मजिस्ट्रेट अदालत के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई के दौरान निचली अदालत ने उन्हें कोई नोटिस जारी नहीं किया। 

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