नई दिल्ली /टीम डिजिटल। ‘मेड इन इंडिया’ योग विज्ञान (yoga science) अब फिटनेस (fitness) फैशन का हिस्सा है। वैदिक ज्ञान की ‘लेबलिंग’ के साथ दिल्ली और महानगरों में योगा सेंटर्स का बोलबाला जोरों पर हैं। लोगों ने योग आसनों को भी एक फास्ट रिजल्टिंग ऑप्शन के तौर पर आजमाना शुरू कर दिया है। जाहिर है योग शिक्षकों को भी योग और एरोबिक्स का कुछ मिला-जुला नया वर्जन काफी माफिक आ रहा है। मगर क्या सच में हजारों साल पुरानी इस वैज्ञानिक पद्धति ‘योग’ को इसी ऊंचाई की तलाश थी?
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तेजी से वजन गिराने की जगह सुधारें सेहत, करें योग योग संहिता का पहला सूत्र जीवेम शरदः शतम् (आप सौ साल निरोगी जीवन जिएं) रहा है। कुछ लोग योग आसन करा कर एक महीने में पांच किलो वजन घटाने या फिर हाथों-पैरों का दर्द दूर करने का सौदा करना चाहते हैं। जाहिर है, फेफड़ों की बढ़ती ताकत या किड्नी, श्वसन तंत्र समेत पूरे तंत्रिका तंत्र के दूर होते रोगों की धीमी रफ्तार को महज वजन कम होने के गणित में नहीं तोला जा सकता। कार्डियो वर्क आउट और एरोबिक्स, स्पिनिंग सेक्शन की फास्ट बीट पर पसीना बहाने की सहूलियत के तराजू में योग को तोलना और दोनों पलड़ों की बराबरी तलाशना योग शिक्षकों को नागवार गुजरता है।
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मजबूत बाजू नहीं मजबूत फेफड़े देता है योग विज्ञान सवाल सीधा-साधा है? आपको मजबूत बाजू चाहिए या फिर मजबूत फेफड़े? महज वजन घटाना है या निजात पाना है बीमारियों की लंबी फेहरिस्त से। योग कक्षाओं में आपको हट्टे-कट्टे बाईसेप्स प्राचिल,लेट्टिसिमस डॉर्सी मसल्स नहीं मिल सकते। ऐरोबिक्स सरीखे पसीना बहाने के ऑॅप्शन भी उतने नहीं होते, इनमें पिलाटे सरीखी नई-नकोर आर्ट सरीखा ग्लैमर नहीं है। मगर सही शेप और रातों रात रिजल्ट की चाहत में आने वाले कल को नजर अंदाज करना या आंखें मूंद कर गलत-सही कैमिकल खुराक लेते रहना भी सही नहीं ठहराया जा सकता।
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शरीर के अंदरूनी अंगों को सुधारता है योग योग विज्ञान के ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे भवन्तु निरामया...’ के सिद्धान्त का झंडा बुलंद करने के लिए किसी सही-गलत उदाहरण को हाई लाइट करने की जरूरत नहीं। इसमें सुबह जल्दी उठने, रोगों से लड़ने के लिए शरीर को तैयार करने, अपने मसल्स की जगह अपने शारीरिक अंगों को अंदर से मजबूत बनाने और लंबी जीवन पद्धति को जीने के लिए खुद को मानसिक रूप से तैयार करने पर कोई सवालिया निशान लगाया भी नहीं जाना चाहिए। आयुष्मान भवः...!
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