नई दिल्ली (टीम डिजिटल)। उरी अटैक के बाद से ही भारते के रिश्ते पाकिस्तान से कुछ ज्यादा ही खट्टे हो गए हैं। वहीं, इन खट्टाए रिश्तों के बीच अब इस बात की सुगबुगाहत भी आने लगी है कि शायद भारत सिंधु नदी समझौता तोड़ दे। हालांकि अभी इस पर कोई भी आधिकारिक बयान नहीं आया है। लेकिन सभी के जेहन में ये सवाल बार-बार उठ जरूर रहा है।
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वहीं, इन अटकलों को और भी पुख्ता कर रहा है विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप। यह पूछे जाने पर दोनों देशों के बीच बढ़ते तनाव को देखते हुए क्या सरकार सिंधु जल संधि पर पुनर्विचार करेगी तो विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने कहा, ‘ऐसी किसी संधि पर काम के लिए यह महत्वपूर्ण है कि दोनों पक्षों के बीच परस्पर सहयोग और विश्वास होना चाहिए।’
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उन्होंने कहा कि संधि की प्रस्तावना में यह कहा गया है कि यह ‘सद्भावना’ पर आधारित है। फिर पूछे जाने पर कि भारत इस संधि को खत्म करेगा जो उन्होंने कोई ब्यौरा नहीं दिया और सिर्फ इतना कहा कि कूटनीति में सबकुछ बयां नहीं किया जाता और तथा उन्होंने यह नहीं कहा कि यह संधि काम नहीं कर रही है।
For any such treaty to work, its imp that there must be mutual trust and cooperation, cant be a one sided affair: MEA on Indus Waters Treaty pic.twitter.com/m789x72Daz — ANI (@ANI_news) September 22, 2016
For any such treaty to work, its imp that there must be mutual trust and cooperation, cant be a one sided affair: MEA on Indus Waters Treaty pic.twitter.com/m789x72Daz
इस संधि के तहत ब्यास, रावी, सतलज, सिंधु, चिनाब और झेलम नदियों के पानी का दोनों देशों के बीच बंटवारा होगा। प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपाति अयूब खान ने सितम्बर, 1960 में इस संधि पर हस्ताक्षर किया था।
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पाकिस्तान यह शिकायत करता आ रहा है कि उसे पर्याप्त पानी नहीं मिल रहा है और वह कुछ मामलों में अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता के लिए भी आगे गया है। स्वरूप ने यह भी कहा कि दोनों देशों के बीच इस संधि के क्रियान्वयन को लेकर मतभेद है।
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56 साल पुरानी है ये संधि
भारत-पाकिस्तान के बीच हुई ये संधि करीब 56 साल पुरानी है। भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब ख़ान के बीच ये संधि 1960 में हुई थी। इसमें सिंधु नदी बेसिन में बहने वाली 6 नदियों को पूर्वी और पश्चिमी दो हिस्सों में बांटा गया। पूर्वी हिस्से में बहने वाली नदियों सतलज, रावी और ब्यास के पानी पर भारत का पूर्ण अधिकार है, लेकिन पश्चिमी हिस्से में बह रही सिंधु, चिनाब और झेलम के पानी का भारत सीमित इस्तेमाल कर सकता है।
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