नई दिल्ली/टीम डिजिटल। दिल्ली चलो के आह्वान के साथ 26-27 नवम्बर 2020 को शुरू हुआ किसान आंदोलन शुक्रवार को ऐतिहासिक संघर्ष का एक साल पूरा कर रहा है। संयुक्त किसान मोर्चा ने इस लंबे संघर्ष को भारत सरकार की अपने मेहनतकश नागरिकों के प्रति असंवेदनशीलता और अहंकार का प्रतिबिंब बताया। किसानों ने दावा किया कि दुनिया भर से करोड़ों लोगों ने इस आंदोलन को सहयोग दिया, भाग लिया और अब शुक्रवार को भी कई संगठन इससे जुड़ेंगे। किसान नेता बलवीर सिंह राजेवाल ने कहा कि तीन किसान विरोधी कानूनों को निरस्त करने के सरकार के निर्णय और कैबिनेट की मंजूरी के अलावा, किसान आंदोलन ने किसानों, आम नागरिकों और देश के लिए कई तरह की जीत हासिल की। आंदोलन ने क्षेत्रीय, धार्मिक या जातिगत विभाजनों को खत्म करते हुए किसानों के लिए एकीकृत पहचान की भावना भी पैदा की। किसान के रूप में अपनी पहचान और नागरिकों के रूप में अपने अधिकारों के दावे में किसान सम्मान और गर्व की एक नई भावना की देख रहे हैं। इसने भारत में लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता की जड़ें गहरी की हैं। आंदोलन मुख्य रूप से भाग लेने वाले प्रत्येक प्रदर्शनकारी व्यक्ति के शांतिपूर्ण दृढ़ संकल्प के कारण ही खुद को बनाए रखने और मजबूत करने में सक्षम रहा है। यह दावा करते हुए योगेंद्र यादव बोले कि आंदोलन ने ट्रेड यूनियनों और महिलाओं, छात्रों, युवा संगठनों सहित अन्य प्रगतिशील और लोकतांत्रिक जन संगठनों के सहयोग से भी ताकत हासिल की। भारत के लगभग सभी विपक्षी राजनीतिक दल साल भर के संघर्ष में किसानों के समर्थन में खड़े हुए। इस जन आंदोलन में कलाकारों, शिक्षाविदों, लेखकों, डॉक्टरों, वकीलों आदि सहित समाज के कई वर्गों ने अपना योगदान दिया। हन्नान मोल्ला ने कहा कि हम फिर दोहराते हैं कि कानूनों को निरस्त करना आंदोलन की सिर्फ पहली बड़ी जीत है। एसकेएम प्रदर्शनकारी किसानों की बाकी जायज़ मांगों को पूरा किए जाने का इंतजार कर रहा है। दिल्ली मोर्चा और राज्यों की राजधानियों में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन के साथ ऐतिहासिक किसान आंदोलन के एक वर्ष को चिह्नित करने के लिएए किसान बड़ी संख्या में एकजुट हो रहे हैं। दिल्ली के विभिन्न मोर्चों पर हजारों की संख्या में किसान पहुंचने लगे हैं। दूर राज्यों में इस आयोजन को रैलियों, धरने और अन्य कार्यक्रमों की भी योजना है। किसान नेताओं ने कहा कि आंदोलन में अब तक 683 किसानों ने अपने प्राणों की आहूति दी है। प्रधानमंत्री को लिखे अपने पत्र में उठाई गई अपनी मांग को दोहराते हुए कहा कि केंद्र सरकार आंदोलन में शहीद हुए किसानों के परिवारों को मुआवजा दे और उनके परिवार के पुनर्वास की घोषणा करे साथ ही सिंघू मोर्चा में उनके नाम पर स्मारक बनाने के लिए जमीन आवंटित की जाए।
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