Friday, Jun 09, 2023
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no movement goes in vain, struggle results

कोई भी आंदोलन बेकार नहीं जाता, संघर्ष का निकलता है परिणाम

  • Updated on 11/19/2021

नई दिल्ली/शेषमणि शुक्ल। आंदोलन और संघर्ष का रास्ता कभी भी निष्फल नहीं जाता। तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा से यह बात एक बार फिर सही साबित हुई। वक्त लग सकता है, परिणाम मिलता जरूर है। खासकर अहिंसक आंदोलन लोकतंत्र में सबसे कामयाब हथियार साबित हुआ है। कृषि कानूनों के खिलाफ बीते करीब पौने 12 महीने से दिल्ली की सीमा घेर कर बैठे किसानों की मांग मान लिया जाना महात्मा गांधी के अहिंसा के सिद्धांत और स्वंत्रता आंदोलन को लेकर की जा रही तरह-तरह की बातों का जवाब भी है।

कृषि कानून वापसी पर बोली कांग्रेस, जीता किसानों का संघर्ष, सरकार के अहंकार की हार हुई
केंद्र की मोदी सरकार ने 2020 में तीन कृषि कानून बनाए थे। इसमें एक है कृषि उत्पादन एवं वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक, दूसरा है, किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा अधिनियम और तीसरा है आवश्यक वस्तु अधिनियम। इन कानूनों को 17 सितम्बर 2020 को मंजूरी दी गई थी। इसके पहले ही इसका विरोध शुरू हो गया था। विपक्ष ने इन कानूनों को रोकने के लिए संसद से लेकर राष्ट्रपति दरबार तक गुहार लगाई, लेकिन बहुमत की सरकार ने उसकी एक न सुनी। इसके बाद विरोध की कमान किसानों ने अपने हाथ में ले ली और सडक़ पर उतर पड़े। 26 नवम्बर 2020 को किसानों ने दिल्ली कूच की घोषणा कर दी। पुलिस ने किसानों को दिल्ली में घुसने नहीं दिया।

संयुक्त किसान मोर्चा ने किया साफ- नए MSP कानून के लिए जारी रहेगा आंदोलन
पंजाब के रास्ते आने वाले किसानों को सिंघु बार्डर पर, हरियाणा के रास्ते आने वाले किसानों को टीकरी बार्डर पर और उत्तर प्रदेश-उत्तराखंड के रास्ते आने वाले किसानों को गाजीपुर बार्डर पर रोक दिया गया। उस दिन से अब तक किसान इन सीमाओं को घेरे बैठे हैं। इस बीच कई बार किसानों और पुलिस के बीच संघर्ष भी हुआ। इस आंदोलन में अब तक 600 से ज्यादा किसानों की मृत्यु होने का दावा किया जा रहा है। केंद्र सरकार के साथ किसानों की 11 दौर की वार्ता के बाद भी समाधान नहीं निकला। किसान अपनी मांग पर और सरकार अपनी जिद पर अड़े रहे। सुप्रीमकोर्ट के दखल के बाद भी कोई हल निकलता नहीं दिखा। शुक्रवार को अचानक प्रधानमंत्री ने देश को संबोधित करते हुए तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा कर दी। इसे हाल में हुए उपचुनावों के नतीजों और अगले कुछ महीने बाद पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड समेत पांच राज्यों में होने जा रहे चुनावों से जोड़ कर देखा जा रहा है।

पहली दफा नहीं है जब मोदी सरकार बैकफुट पर आई
मोदी सरकार अपने किसी फैसले पर पहली दफे कदम पीछे खींचा हो, ऐसा नहीं है। इसके पहले भी यह सरकार भूमि अधिग्रहण कानून पर अपना फैसला पलट चुकी है। 2014 में केंद्र की सत्ता संभालने के कुछ महीने बाद ही मोदी सरकार नया भूमि अधिग्रहण कानून लेकर आई थी। इसमें भूमि अधिग्रहण में किसानो की सहमति लेने संबंधी प्रावधान को हटा दिया गया था। जबकि पूर्व के कानून में 80 फीसदी किसानों की सहमति लेना जरूरी था। इस कानून का किसानों के साथ ही विरोधी दलों ने भी जमकर विरोध किया। चार बार अध्यादेश लाने के बाद भी जब सरकार इस कानून को संसद में पास नहीं करवा पाई तो 31 अगस्त 2015 को वापस लेने की घोषणा कर दी।

जब-जब किसान सडक़ पर उतरा, जीत कर ही गया
पगड़ी संभाल जट्टा-इतिहास गवाह है कि किसान जब भी सडक़ पर उतरा, सरकार किसी की भी रही हो, जीत कर ही लौटा है। ब्रिटिश शासनकाल से लेकर अब तक इसके कई उदाहरण मिलते हैं। 1907 में ‘पगड़ी संभाल जट्टा’  का नारा देकर शहीद भगत सिंह के चाचा अजीत सिंह ने तत्कालीन सरकार की ओर से लाए गए तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों को संगठित किया था। इन कानूनों के मुताबिक किसानों की जमीन जब्त हो सकती थी। पंजाब औपनिवेशीकरण कानून, बढ़े हुए राजस्व और पानी की दरें बढ़ाए जाने के खिलाफ किसानों ने आंदोलन शुरू किया। इस आंदोलन का प्रभाव क्षेत्र भी पंजाब ही रहा। किसानों के बढ़ते आंदोलन के चलते आखिर में ब्रिटिश सरकार को इन तीनों कानूनों को रद्द करना पड़ा था।
टिकैत आंदोलन-भारतीय किसान यूनियन के संस्थापक महेंद्र सिंह टिकैत ने 32 साल पहले तत्कालीन राजीव गांधी सरकार के खिलाफ बोट क्लब पर किसान पंचायत की थी। उनके नेतृत्व में आए देश के 14 राज्यों के पांच लाख से ज्यादा किसानों ने एक सप्ताह तक दिल्ली को पूरी तरह जाम किए रखा। आखिर में सरकार को झुकना पड़ा और किसानों से बातचीत करनी पड़ी। महेंद्र सिंह टिकैत के बेटे राकेश टिकैत ही इस वक्त गाजीपुर सीमा पर चल रहे किसान आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं।
सर छोटूराम बने किसान मसीहा- ब्रिटिश सरकार में 1935 से 1939 के बीच किसानों के कई आंदोलन हुए। इन आंदोलनों का नेतृत्व दीनबंधु चौधरी सर छोटूराम ने किया और तत्कालीन सरकार से किसान हित में कई कानून बनवाने में अहम भूमिका निभाई। इनमें से साहूकार पंजीकरण एक्ट, गिरवी जमीनों की मुफ्त वापसी एक्ट, कृषि उत्पाद मंडी अधिनियम और कर्जा माफी अधिनियम जैसे प्रमुख रहे। किसान-मजदूरों के लिए किए गए संघर्ष की वजह से ही 1937 में उन्हें ‘नाइट’ की उपाधि दी गई।

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