नई दिल्ली, (ब्यूरो): सरकार की ओर से मातृ-शिशु मृत्यु दर को रोकने के तमाम प्रयासों के बीच प्रत्येक वर्ष तकरीबन पांच लाख बच्चे मृत पैदा हो रहे हैं। इस बात का खुलासा विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की एक रिपोर्ट में हुआ है। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक मृत बच्चे पैदा होने के मामले में भारत विश्व के 10 बड़े देशों में सबसे ऊपर है।
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संगठन की ओर से हाल ही में जारी गाइडलाइंस में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को गर्भवती महिलाओं के प्रति खासी सर्तेकता बरतने की सलाह भी दी गई है। इसमें मर रहे बच्चों की संख्या को कम करने के लिए कुछ तरीके भी बताए गए हैं। वर्ष 2015 के दौरान भारत में 5,92,000 मृत प्रसव दर्ज किए गए हैं। यह आंकड़े भारत में प्रसव पूर्व देखभाल की चौंकाने वाली स्थिति बयान करते हैं।
डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के मुताबिक, सरकार गर्भवती महिलाओं को स्वस्थ्य खानपान और शारीरिक गतिविधियों के बारे में जानकारी देने के लिए एक बड़े स्तर पर अभियान चलाए। इसके अलावा गर्भवती महिलाओं में एनीमिया, प्यूरपेरेल सेप्सीस, जन्म के समय कम वजन की जांच कराए। साथ ही समय से पहले प्रसव से बचाव के लिए आयरन एवं फोलिक एसिड सप्लीमेंट टेबलेट दें, जिसमें 30 से 60 एमजी आयरन होना जरूरी है।
वहीं, 0.4 एमजी फोलिक एसिड हर रोज खाने के लिए दिया जाए। टिटनेस के टीके, 24 सप्ताह से पहले अल्ट्रासाउंड और एक से ज्यादा गर्भ की पहचान करने के लिए टेस्ट भी कराए जाएं। प्रसव के दौरान बच्चे की मौत को लेकर डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट को इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) गंभीरता से लेते हुए सरकार को पत्र लिख ठोस कदम उठाने की मांग की है।
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आईएमए अध्यक्ष डॉ. केके अग्रवाल ने कहा कि देश में प्रसव पूर्व देखभाल का दायरा बहुत खराब है, औसतन यह 50 फीसदी के स्तर पर है। साथ ही सबसे खराब स्थिति ग्रामीण इलाकों की है। डॉ. अग्रवाल ने कहा कि मृत प्रसव, जन्म के समय बच्चे का कम वजन और समय से पूर्व प्रसव की दर को कम करने के लिए सरकार को ठोस कदम उठाने ही पड़ेंगे।
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