Thursday, Mar 30, 2023
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तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने के खिलाफ थी सुप्रीम कोर्ट की कमेटी, 85 फीसद किसानों का था समर्थन 

  • Updated on 3/21/2022

नई दिल्ली/टीम डिजिटल। तीन कृषि कानूनों का अध्ययन करने के लिए उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त समिति इसे पूरी तरह निरस्त करने के पक्ष में नहीं थी। समिति ने निर्धारित मूल्य पर फसलों की खरीद का अधिकार राज्यों को देने, आवश्यक वस्तु अधिनियम को खत्म करने, कृषि सुधार लागू करने का सुझाव दिया था। समिति के तीन सदस्यों में से एक पुणे के किसान नेता अनिल घनवट ने सोमवार को रिपोर्ट के अंश जारी करते हुए यह बात कही। 
        अनिल घनवट ने कहा कि तीन मौकों पर समिति की रिपोर्ट जारी करने के लिए उच्चतम न्यायालय को पत्र लिखा लेकिन जवाब नहीं मिला तो इसे जारी कर रहे हैं। हालंाकि समिति के दो अन्य सदस्य अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी, कृषि अर्थशास्त्री प्रमोद कुमार जोशी इस मौके पर मौजूद नहीं थे। समिति ने तीन कृषि कानूनों पर 19 मार्च 2021 को अपनी सिफारिशें दी थीं, जिसमें किसानों को सरकारी मंडियों के बाहर निजी कंपनियों को कृषि उपज बेचने की अनुमति देने को कहा था। साथ ही ओपन एंडेड खरीद नीति बंद करने, मॉडल अनुबंध समझौते के पक्ष में सिफारिश की थी। 
उत्तर प्रदेश और पंजाब में विधानसभा चुनाव से पहले पिछले साल नवंबर में नरेंद्र मोदी नेतृत्व वाली सरकार ने तीनों कृषि कानूनों को निरस्त कर दिया था। 
          उन्होने कहा कि उत्तर प्रदेश, पंजाब चुनाव से पहले पिछले साल नवम्बर में नरेंद्र मोदी नेतृत्व वाली सरकार ने तीनों कृषि कानूनों को निरस्त कर दिया था। इसलिए अब इस रिपोर्ट की कोई प्रासंगिकता नहीं है लेकिन भविष्य में कृषि क्षेत्र के लिए नीतियां बनाने में मदद मिलेगी। उन्होने बताया कि किसानों से बातचीत से जाहिर हुआ कि केवल 13.3 प्रतिशत हितधारक तीन कानूनों के पक्ष में नहीं थे। तीन करोड़ से अधिक किसानों का प्रतिनिधित्व करने वाले लगभग 85.7 प्रतिशत किसान संगठनों ने कृषि कानूनों का समर्थन किया। संयुक्त किसान मोर्चा के आंदोलनकारी 40 संगठनों ने हालंाकि अपनी राय नहीं दी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 नवम्बर को राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा कर दी। 
        अनिल घनवट ने कहा कि सरकार कृषि कानूनों के लाभ आंदोलकनकारी किसानों को नहीं समझा सकी। एमएसपी प्रणाली को कानूनी रूप देने की मांग पर समिति ने रिपोर्ट में कहा कि मांग ठोस तर्क पर आधारित नहीं थी और इसे लागू करना संभव नहीं है। गेहूं और चावल के लिए, खरीद पर सीमा होनी चाहिए जो जन वितरण प्रणाली की जरूरतों के अनुरूप हो। समिति ने कम से कम दस साल आगे कैसे बढऩा है, इस पर कुछ विकल्प दिए और कहा कि केंद्र सरकार द्वारा राज्यों में गेहूं, चावल की खरीद, भंडारण, पीडीएस पर उत्पादन, खरीद, गरीबी को उचित महत्व देने वाले उद्देश्य के आधार पर वर्तमान खर्च आवंटित किया जाए। राज्यों को अपने क्षेत्र में किसानों का सहयोग करने, गरीब उपभोक्ताओं की रक्षा करने के लिए उपाय की स्वतंत्रता दी जाए। अनिल घनवट ने कहा कि वह जल्द ही कृषि नीति पर एक चर्चा पत्र लेकर आएंगे और कृषि सुधारों को आगे बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय राजधानी में अक्टूबर में दिल्ली में एक लाख से अधिक किसानों की एक रैली भी आयोजित करेंगे।  
 

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