नई दिल्ली/टीम डिजिटल। जनवरी माह की 12 तारीख को देश में राष्ट्रीय युवा दिवस ( National Youth Day) के रुप मनाया जाता है। इस दिन को युवा दिवस के रुप में स्वामी विवेकानंद की याद में मनाया जाता है। स्वामी विवेकानंद भारत के महान दार्शनिक, आध्यात्मिक और सामाजिक नेताओं में से एक हैं। जिनकी जंयती को पूरा देश युवा दिवस के रुप में मनाता है। बता दें स्वामी विवेकानंद ने भारत के युवाओं में एक ऊर्जा भरी थी। इसके अलावा उन्होंने पूरी दुनिया को भारतीय संस्कृति और सनानत धर्म से मिलाया था। उनके अमेरिका में दिया गया भाषण सुनकर आज भी हर भारतीय उन पर गर्व करता है।
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1863 में हुआ था जन्म बता दें विवेकानंद का जन्म 1863 में हुआ था। उनका बचपन का नाम नरेंद्र दत्त था। वह कोलकाता के एक पैसे वाले परिवार में जन्मे थे। जो बाद में भारतीय संस्कृति का ध्वजवाहक बनाया और उसने दुनिया को बताया कि भारत क्या है। स्वामी विवेकानंद के जीवन की सबसे अहम घटना 1893 में घटी थी। जब उन्होंने 1893 में अमेरिका के शिकागो में एक धर्म संसद में भाषण दिया था। इस भाषण के बाद पूरी दुनिया उनको जान गई थी। इस क्षण को बाद में ईस्ट मीट वेस्ट के रुप के जाना गया।
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अमेरिका में दिया था शानदार भाषण वहीं इसके बाद स्वामी विवेकानंद ने 1897 में विवेकानंद ने धर्म संसद से लौटकर अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस के नाम पर रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। आज यह पूरे देश के कौने-कौने में फैला हुआ है। इसके बाद स्वामी विवेकानंद ने अपने पूरे जीवन युवाओं को ऊर्जावान किया और उन्हें दिशा दी कि वह आलस छोड़े और जीवन के किसी भी क्षेत्र में जाकर उसे हांसिल करें। वहीं 1902 में 4 फरबरी को स्वामी विवेकानंद ने ध्यान अवस्था में जाकर अपने जीवन को त्याग दिया। वह ध्यानावस्था में ही परलोक सिधार गए।
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युवाओं को करते थे प्रेरित 1984 आते-आते भारत सरकार ने अपने धार्मिक धर्मगुरु और दार्शनिक नेता को सम्मान देने के लिए 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस के रुप में घोषित कर दिया। क्योंकि विवेकानंद ने अधिकांश समय युवाओं के साथ मनाया इसलिए उन्हें सम्मान देने के लिए यह निर्णय लिया गया था।
स्वामी विवेकानंद के विचारों ने उस समय युवाओं में क्रांति ला दी थी। स्वामी विवेकानंद हमेशा युवाओं को आगे बढ़ने के लिए प्ररित करते थे। वह चाहते थे कि भारत के युवा अपना आलस छोड़े और शिक्षा और शांति को अपना हथियार मनाते हुए। वह कहते हैं कि भारत के युवा अपना आलस त्यागे और अपनी मर्जी के हिसाब से अपने क्षेत्र में आगे बढ़े। वह कहते हैं थे कि पढ़ने के लिए एकाग्रता जरुरी है और एकाग्रता के लिए ध्यान जरुरी है। ध्यान से ही इंद्रियों को वश में किया जा सकता है।
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