नई दिल्ली (टीम डिजिटल)। महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन के बारे में कहा जाता है कि वह रात को जग कर भी गणित के सवाल हल करते थे और फिर सो जाते थे। नींद में वह सपनें भी गणित के सूत्रों को ही देखते थे। वे कहते थे कि मेरे लिए गणित के उस सूत्र का कोई मतलब नहीं है, जिससे मुझे आध्यात्मिक विचार न मिलते हों।
22 दिसम्बर 1887 को मद्रास से 400 किमी. दूर दक्षिण-पश्चिम में इरोड नामक एक छोटे से गांव में जन्में रामानुजन ने गणित में अद्भुत योगदान दिया। आपको जान कर हैरानी होगी की उनके द्वारा दी गई कई प्रमेय को कम्प्यूटर की मदद से भी सुलझा पाना आसान नहीं है। आज ही के दिन (26 अप्रैल, 1920 ) मात्र 33 वर्ष की कम उम्र में इस महान गणितज्ञ की मृत्यु हो गई थी।
श्री निवासन रामानुजम का जन्म 22 दिसम्बर 1887 को मद्रास से 400 किमी. दूर दक्षिण-पश्चिम में इरोड नामक एक छोटे से गांव में हुआ था। रामानुजन के पिता एक कपड़ा व्यापारी की दुकान में मुनीम का कार्य करते थे। 5 वर्ष की आयु में रामानुजन का दाखिला कुम्भकोड़म् के प्राथमिक विद्यालय में करा दिया गया। 1898 में इन्होंने टाउन हाईस्कूल में प्रवेश लिया और सभी विषयों में अच्छे नंबर लाए।
सन् 1905 में रामानुजन मद्रास विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा में सम्मिलित हुए, लेकिन गणित को छोड़कर शेष सभी विषयों में वे अनुत्तीर्ण हो गए। 1906 एवं 1907 की प्रवेश परीक्षा का भी यही परिणाम रहा। सन 1909 में इनका विवाह हो गया। अब उनके सामने बड़ी चुनौती थी आजीविका चलाने की।
1911 में बर्नोली संख्याओं पर उनके द्वारा किये गए शोध से उन्हें प्रसिद्धि मिली। इसके बाद तो वह उस दौरान मद्रास में गणित के विद्वान के रूप में पहचाने जाने लगे। 1912 में रामचंद्र राव की सहायता से मद्रास पोर्ट ट्रस्ट के लेखा विभाग में लिपिक की नौकरी करने लगे। रामानुजन ने गणित में शोध करना जारी रखा और 1913 में इन्होंने जी. एम. हार्डी को पत्र लिखा, साथ में स्वयं के द्वारा खोजे प्रमेयों की एक लम्बी सूची भी भेजी।
1913 में हार्डी के पत्र के आधार पर रामानुजन को मद्रास विश्वविद्यालय से छात्रवृत्ति मिलने लगी। अगले वर्ष 1914 में हार्डी ने रामानुजन के लिए केम्ब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज आने की व्यवस्था की। रामानुजन ने गणित में जो कुछ भी किया था वो सब अपने बल पर किया था। स्वयं हार्डी ने इस बात को स्वीकार किया कि जितना उन्होंने रामानुजन को सिखाया उससे कहीं ज्यादा रामानुजन ने उन्हें सिखाया।
1916 में रामानुजन ने केम्ब्रिज से बी. एस-सी. की उपाधि प्राप्त की। 1917 से ही रामानुजन बीमार रहने लगे थे और अधिकांश समय बिस्तर पर ही रहते थे। 1918 में, एक ही वर्ष में रामानुजन को कैम्ब्रिज फिलोसॉफिकल सोसायटी, रॉयल सोसायटी तथा ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज तीनों का फेलो चुन गया। इससे रामानुजन का उत्साह और भी अधिक बढ़ा और वह खोजकार्य में जोर-शोर से जुट गए।
1919 में स्वास्थ बहुत खराब होने की वजह से उन्हें भारत वापस लौटना पड़ा। जब रामानुज अस्पताल में भर्ती थे तो डॉ. हार्डी उन्हें देखने आए। डॉ. हार्डी जिस टैक्सी में आए थे उसका नं. था 1729। यह संख्या डॉ. हार्डी को अशुभ लगी, क्योंकि 1729 = 7 x 13 x 19 और इंग्लैण्ड के लोग 13 को एक अशुभ संख्या मानते हैं। लेकिन रामानुजन ने कहा कि यह तो एक अद्भुत संख्या है। यह वह सबसे छोटी संख्या है, जिसे हम दो घन संख्याओं क जोड़ से दो तरीके में व्यक्त कर सकते हैं।1903 से 1914 के बीच, कैम्ब्रिज जाने से पहले रामानुजन अपनी पुस्तिकाओं में 3,542 प्रमेय लिख चुके थे। उन्होंने ज्यादातर अपने निष्कर्ष ही दिए थे, उनकी उत्पत्ति नहीं दी। शायद इसलिए कि वे कागज खरीदनें में सक्षम नहीं थे और वे अपना कार्य पहले स्लेट पर करते थे। बाद में बिना उपपत्ति दिए उसे पुस्तिका में लिख लेते थे। सन् 1919 में इंग्लैंड से वापस आने के बाद रामानुजन कोदमंडी गांव में रहने लगे।
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