नई दिल्ली/शेषमणि शुक्ल। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले चरण में 10 फरवरी को जिन जिलों में मतदान होना है, उनमें सबसे प्रमुख मेरठ है। मेरठ जिले में सात विधानसभा सीटें हैं। 2017 में जिले की छह सीटें भाजपा ने जीती थी। एक सीट सपा के हिस्से में गई थी। इस बार भाजपा के सामने इस प्रदर्शन को दोहराने की चुनौती है। पार्टी ने दो विधायकों का टिकट काट दिया है और एक सीट पर बिल्कुल नया चेहरा दे दिया है। यह बदलाव किसान आंदोलन से पनपी नाराजगी और पांच साल के सत्ता विरोधी लहर को कितना बेअसर कर सकेगा, यह नतीजे बताएंगे।
पहले की तरह गुंडों व पेशेवर अपराधियों पर टूटेगी सरकार, बिलों में घुसाए जाएंगे अपराधी, योगी मुजफ्फरनगर दंगे के साए में हुए 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को धार्मिक ध्रुवीकरण का फायदा मिला था। सांप्रदायिक दंगों का मेरठ का एक इतिहास रहा है। इसका असर हमेशा से चुनावों पर पड़ता रहा है, चाहे निकाय चुनाव हों या फिर विधानसभा-लोकसभा का चुनाव। जिले में 26.12 लाख मतदाता हैं, जिसमें मुस्लिम आबादी बड़ी संख्या में है, जो भाजपा के लिए काफी मुफीद बन जाती है। लेकिन पिछले चुनाव में इस ध्रुवीकरण का नुकसान भी उसे उठाना पड़ा। पूरे प्रदेश में जब भाजपा क्लीन स्वीप कर रही थी, पार्टी अपनी परंपरागत मेरठ शहर की सीट हार गई। चार बार के विधायक और भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी को समाजवादी पार्टी के एक पार्षद के हाथों हार का मुंह देखना पड़ा था। ध्रुवीकरण के चलते शहर सीट पर मुस्लिम एकजुट हो गए। इस सीट पर मुस्लिम मतदाता करीब डेढ़ लाख हैं। भाजपा यहां तभी जीत पाती है, जब मुस्लिम वोट बंटता है। 2017 से पहले वाजपेयी 1993 और 2007 में हारे थे। इन चुनावों में भी हालात कमोबेश वही बने थे।
शहर सीटः भाजपा का नया चेहरा मेरठ शहर विधानसभा सीट पर 1989 से लगातार लक्ष्मीकांत वाजपेयी ही भाजपा के प्रत्याशी बनते रहे हैं। वे भाजपा के टिकट पर 1989, 1996, 2002 और 2012 में जीत कर राज्य विधानसभा में मेरठ शहर का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। लेकिन उन्होंने 2022 का चुनाव लडऩे से इंकार कर दिया। पार्टी ने उनकी जगह अब एक युवा और बिल्कुल नया चेहरा कमल दत्त शर्मा दिया है। जबकि सपा ने अपने मौजूदा विधायक रफीक अंसारी को ही फिर टिकट दिया है। रफीक अंसारी 2012 में वाजपेयी से महज 6278 वोट से हारे थे जबकि 2017 में उन्होंने 28769 मतों से वाजपेयी को हराया था। कमल दत्त शर्मा को 28 हजार वोट का गैप भरने की चुनौती मिली है। सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के लिए अब तक भाजपा के पास कोई स्थानीय मुद्दा नहीं है। अयोध्या, काशी और मथुरा फिलहाल अभी यहां चलता दिख नहीं रहा है।
मेरठ कैंटः भाजपा ने विधायक का काटा टिकट मेरठ कैंट सीट पर भाजपा ने इस बार अपना प्रत्याशी बदल दिया है। सत्य प्रकाश अग्रवाल का टिकट काट कर पार्टी ने पूर्व विधायक अमित अग्रवाल को उम्मीदवार बनाया है। 4.27 लाख की आबादी वाली कैंट विधानसभा सीट वैश्य और पंजाबी बहुल है, जो भाजपा के लिए सबसे सुरक्षित मानी जाती है। पिछले चुनाव में बसपा के सतेंद्र सोलंकी को 76619 मतों से हराकर सत्यप्रकाश ने यह सीट जीती थी। उनका टिकट उनकी ज्यादा उम्र के चलते काटा गया है। बसपा ही इस सीट पर प्रमुख प्रतिद्वंदी रही है। इस बार बसपा ने यहां ब्राह्मण को टिकट दिया है।
मेरठ दक्षिण सीटः बसपा ने फंसाया पेच मेरठ दक्षिण सीट पर भाजपा ने अपने मौजूदा विधायक सोमेंद्र तोमर पर ही भरोसा जताते हुए टिकट रिपीट किया है। हालांकि सोमेंद्र के खिलाफ इलाके में एंटी इन्कम्बेंसी है। पार्टी के सर्वे में यह बात साफ हो चुकी है, लेकिन सामाजिक और जातीय समीकरण को देखते हुए पार्टी ने उन्हें इस बार भी टिकट दिया है। 4.74 लाख मतदाताओं वाली इस सीट पर पिछले चुनाव में बसपा के हाजी मोहम्मद याकूब ने सोमेंद्र को चुनौती दी थी, लेकिन 35 हजार से हाजी हार गए थे। इस बार भी बसपा ने मेरठ दक्षिण में मुस्लिम को ही उम्मीदवार बनाया है। कुंवर दिलशाद को बसपा ने टिकट दिया है। कांग्रेस और सपा-रालोद गठबंधन का प्रत्याशी अभी घोषित होना है।
हस्तिनापुर (एससी) सीट हुई ’हॉट’ मेरठ की हस्तिनापुर सीट इस बार पूरे उत्तर प्रदेश की सबसे हॉट सीट बनती दिख रही है। महाभारत काल में कभी द्रोपदी के अपमान से हस्तिनापुर चर्चा में रहा, जिसके चलते महाभारत युद्ध हुआ था। इस बार यहां कांग्रेस ने बिकनी गर्ल के तौर पर विख्यात मॉडल व अभिनेत्री अर्चना गौतम को टिकट दे दिया है, जिसका हिंदू महासभा और भाजपा विरोध कर रही है। अर्चना वैसे तो हस्तिनापुर की ही रहने वाली हैं, लेकिन ग्लैमर की दुनिया से जुडऩे के बाद अपने बोल्डनेस को लेकर ज्यादा चर्चाओं में रही हैं। 2007 में यह सीट बसपा के टिकट पर योगेश वर्मा ने जीती थी। 2012 में इस सीट पर सपा के प्रभु दयाल बाल्मीकि जीते थे और 2017 में भाजपा के दिनेश खटीक जीते। 2022 के लिए भाजपा ने फिर से दिनेश खटीक को ही मैदान में उतारा है। जबकि बसपा ने संजीव जाटव को इस बार यहां टिकट दिया है। सपा-रालोद का प्रत्याशी अभी घोषित होना है।
किठौर सीट: शाहिद को मंजूर करेगी जनता? मेरठ जिले की किठौर विधानसभा सीट पूरी तरह ग्रामीण क्षेत्र में आती है। 3.62 लाख मतदाता वाली इस सीट पर लंबे वक्त से सपा का कब्जा रहा, लेकिन 2017 के चुनाव में भाजपा इस सीट को छीनने में सफल रही। भाजपा के सत्यवीर त्यागी ने 10822 मतों से सपा प्रत्याशी शाहिद मंजूर को हरा दिया था। जबकि शाहिद मंजूर 2012-17 के अखिलेश सरकार में मंत्री भी रहे। लेकिन जनता ने उन्हें मंजूर नहीं किया। 2022 के लिए भी सपा ने शाहिद मंजूर पर ही भरोसा जताया है। शाहिद इस सीट पर 2007 और 2012 में भी विधायक रहे हैं। इस बार बसपा ने हिंदू उम्मीदवार कुशलपाल मवी को उतार कर यहां भाजपा का गणित बिगाड़ दिया है। मवी गुर्जर समुदाय से हैं, जिनकी इस सीट पर ठीकठाक वोट है। वहीं, कांग्रेस ने भी गुर्जर समुदाय की महिला बबिता गुर्जर को अपना प्रत्याशी बनाया है।
सरधना सीटः संगीत सोम की घेराबंदी सरधना विधानसभा सीट 2012 से भाजपा के पास है। संगीत सोम ने 2013 के मुजफ्फरनगर दंगे से पहले ही इस सीट पर अपनी धमक बना ली थी। बाद में संगीत सोम का नाम मुजफ्फनगर दंगे से और चर्चाओं में आ गया, जिसके बाद 2017 का चुनाव जीतने में उन्हें ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ी। इस बार लेकिन हालात बदले दिख रहे हैं। एक तो किसान आंदोलन का असर ग्रामीण इलाकों में है, ऊपर से उनके खिलाफ एंटी इन्कम्बेंसी भी है। सपा ने संगीत सोम के खिलाफ अतुल प्रधान को प्रत्याशी घोषित किया है। जबकि बसपा ने संजीव धामा को उम्मीदवार बनाया है। धामा जाट समुदाय से हैं। 2013 के मुजफ्फनगर दंगे के बाद से जाटों का एक बड़ा वोट बैंक भाजपा से जुड़ गया था। बसपा इस बार इस वोट बैंक में सेंध लगाती दिख रही है।
सिवालखास: मतदाता क्या जारी रखेंगे परंपरा? मेरठ की सिवालखास विधानसभा सीट के मतदाता लगातार प्रयोग करते रहे हैं। यह भी ग्रामीण सीट है। किसान आंदोलन का यहां असर साफ दिख रहा है। पिछले कई चुनाव इस बात का गवाह हैं कि मतदाताओं ने यहां किसी दल को रिपीट नहीं किया। 3.37 लाख मतदाताओं वाली यह सीट 2007 में बसपा के विनोद कुमार हरित जीते तो 2012 में सपा के गुलाम मोहम्मद और 2017 में यह सीट भाजपा के जितेंद्र पाल सिंह (बिल्लू) ने 11 हजार मतों से जीती थी। 2022 के लिए भाजपा ने मौजूदा विधायक का टिकट काट कर मनेंदर पाल को प्रत्याशी बनाया है। वहीं, बसपा ने मुकर्रम अली को टिकट दिया है। सपा-रालोद गठबंधन और कांग्रेस का टिकट अभी घोषित होना है।
अखिलेश बोले- डॉ. राधा मोहन अग्रवाल चाहें तो सपा उन्हें फौरन उम्मीदवार बना देगी
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