नई दिल्ली/शेषमणि शुक्ल। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण में जिन 55 सीटों पर 14 फरवरी को मतदान होगा, वे सभी पश्चिमी उत्तर प्रदेश की ही हैं। 2017 में इन सीटों में से 38 पर भाजपा विजयी हुई थी। लेकिन अब बदलते समीकरण में भाजपा के सामने चुनौती बढ़ती दिख रही है। ज्यादातर मुस्लिम बहुल सीटें हैं, जिन पर बरेलवी (बरेली) और देवबंदी (सहारनपुर) के मुस्लिम धर्मगुरुओं का प्रभाव है।
सपा को बड़ा झटका! BJP में शामिल हुई मुलायम सिंह यादव की बहू अपर्णा यादव दूसरे चरण का मतदान सहारनपुर, बिजनौर, अमरोहा, संभल, मुरादाबाद, रामपुर के अलावा रुहेलखंड के बरेली, बदायूं, शाहजहांपुर जिलों की 55 विधानसभा सीटों पर होगा। पिछले चुनाव में इन 55 सीटों में से 38 भाजपा को, 15 सीटें सपा को और दो सीटें कांग्रेस को मिली थीं।
पिछला विधानसभा चुनाव सपा और कांग्रेस ने मिलकर लड़ा था। सपा के खाते में आईं 15 सीटों में से 10 पर पार्टी के मुस्लिम उम्मीदवार जीते थे। जबकि 10 फरवरी को होने वाले पहले चरण का मतदान जिन 58 सीटों पर होगा, उसमें पिछली बार भाजपा ने 53 सीटें जीतीं थी। सपा और बसपा को दो-दो तथा रालोद को सिर्फ एक सीट ही मिली थी। लेकिन जीत के बाद रालोद विधायक ने भाजपा ज्वाइन कर ली थी।
यूपी चुनाव : BJP सांसद रीता बहुगुणा ने तेज की अपने बेटे को टिकट दिलाने की मुहिम चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर जयवीर राणा का कहना है कि किसान आंदोलन के चलते हालात भले ही कुछ बदले दिख रहे हों, लेकिन इस बार का चुनाव भी कमोबेश 2017 के पैटर्न पर ही जाता दिख रहा है। प्रोफेसर राणा का कहना है कि सपा- रालोद की ओर से जिस तरह से विवादित मुस्लिम चेहरों को टिकट बांटा गया है, वह भाजपा के ध्रुवीकरण की नीति को खाद-पानी देने का काम कर रहा है।
प्रोफेसर जयवीर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा सपा के घोषित प्रत्याशियों को लेकर निशाना साधे जाने की ओर इशारा करते हुए कहते हैं कि वेस्ट यूपी में चुनाव तो हिंदू-मुस्लिम वाले पैटर्न पर ही होता दिख रहा है। देखना यह होगा कि भाजपा पिछली बार का अपना रिकार्ड कायम रख पाती है या नहीं।
अखिलेश ने अपर्णा को BJP में शामिल होने पर दी बधाई, कही ये बात भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष व विधान पार्षद विजय बहादुर पाठक ने दावा किया कि दूसरे चरण में भी भाजपा पहले से अधिक सीटें जीतेगी क्योंकि केंद्र और प्रदेश की भाजपा सरकार ने सभी वर्गों के विकास को प्राथमिकता दी और यह बात लोग महसूस करते हैं।
राज्य में लंबे समय तक कांग्रेस के शासन और फिर 15 वर्षों तक लगातार सपा-बसपा के शासन में लूट, खसोट और भ्रष्टाचार से पीड़ित जनता इन दलों को दोबारा मौका नहीं देगी। अखिलेश यादव कांग्रेस, बसपा सभी से गठबंधन कर देख चुके हैं और उन्हें जनता सबक सिखा चुकी है।
अब लोनी में लगा भाजपा को झटका, नगरपालिका अध्यक्ष रंजीता धामा ने पार्टी छोड़ी, निर्दलीय लड़ेंगी चुनाव राजनीतिक जानकारों का कहना है कि इस बार सपा, कांग्रेस और बसपा तीनों अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं। सपा के साथ रालोद का गठबंधन जरूर है, मगर इस गठबंधन को तभी कुछ सफलता मिल सकेगी, जब जाट और मुस्लिम 2013 से पहले वाली स्थिति में साथ-साथ आएं। 2013 के मुजफ्फरनगर दंगे से जाट और मुस्लिमों के बीच बनी खाईं को ही 2014, 2017 और 2019 में भाजपा ने वेस्ट यूपी में भुनाया था।
बड़ी संख्या में जाट और गैर जाटव दलित भाजपा के साथ चले गए, जो अभी भी उसके साथ टिके हुए दिख रहे हैं। बता दें कि सपा ने 2017 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस के साथ और 2019 का लोकसभा चुनाव में बसपा एवं रालोद के साथ गठबंधन में लड़ा था। दोनों चुनावों में इन 55 सीटों पर भाजपा के मुकाबले गठबंधन की सियासत को लाभ मिला। मगर, इस बार सपा, बसपा और कांग्रेस के बीच मतदाता बंटते दिख रहे हैं। इस बार सपा के अलावा बसपा ने भी कई प्रमुख सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार दिया है और अपनी सक्रियता भी बढ़ाई है।
चुनाव में EVM के इस्तेमाल को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट पिछले विधानसभा चुनाव में जहां सपा और कांग्रेस को कुल 17 सीटों पर जीत मिली वहीं लोकसभा चुनाव में इस इलाके की 11 सीटों में सात सीटें बसपा-सपा गठबंधन के हिस्से आयीं। इनमें से चार सीटों (सहारनपुर, नगीना, बिजनौर और अमरोहा) पर बसपा जीती जबकि सपा को मुरादाबाद, संभल और रामपुर में तीन सीटों पर जीत मिली थी। यह आंकड़ा दर्शाता है कि लोकसभा चुनाव में मुस्लिम, जाट और दलित मतदाताओं के गठजोड़ का फार्मूला कामयाब हुआ था। इस बार सपा ने रालोद और महान दल के साथ गठबंधन किया है जिनका जाट, शाक्य, सैनी, कुशवाहा, मौर्य, कोइरी बिरादरी में प्रभाव माना जाता है।
भाजपा से निष्कासित हरक सिंह को लेकर कांग्रेस में बढ़ा विरोध सपा के एक नेता ने दावा किया कि सपा, रालोद गठबंधन के साथ, भाजपा से इस्तीफा देकर आए स्वामी प्रसाद मौर्य और धर्म सिंह सैनी तथा महान दल के केशव देव मौर्य का समीकरण बहुत मजबूत साबित होगा। वहीं, बरेलवी मुसलमानों के धार्मिक गुरु और इत्तेहाद-ए-मिल्लत काउंसिल (आईएमसी) के अध्यक्ष मौलाना तौकीर रजा खां का समर्थन मिलने के बाद कांग्रेस को भी मुस्लिम मतदाताओं का एक बड़ा वोट बैंक मिलने की उम्मीद दिख रही है।
हालांकि आल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) ने भी इस इलाके की कुछ सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारा है। एआईएमआईएम को वोट कटवा के तौर पर देखा जा रहा है जो, मुस्लिम मतों को बांटने-काटने का काम करेगी।
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