नई दिल्ली (टीम डिजिटल )। ई -वेस्ट यानी इलेक्ट्रॉनिक-कचरा उत्सर्जन मानव स्वास्थ्य, पशु पक्षियों और पर्यावरण के लिए बड़ी चुनौती बन गया है, लेकिन तक इसे ठिकाने के लिए कोई कारगर उपाय अभी तक नहीं खोजा जा सका है। उद्योग एवं वाणिज्य संगठन एसोचैम की रिपोर्ट की माने ई वेस्ट 18.5 लाख टन प्रतिवर्ष से बढ़कर वर्ष 2018 तक 30 लाख टन प्रतिवर्ष हो जाएगा।
एक रिपोर्ट के मुताबिक मुंबई सर्वाधिक एक लाख 20 हजार टन ई-कचरा उत्सर्जित करता है। उसके बाद 98 हजार टन के साथ राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) दिल्ली एवं 92 हजार टन के साथ बेंगलुरु का स्थान है। इनके अलावा, चेन्नई 67 हजार टन प्रतिवर्ष, कोलकाता 55 हजार टन प्रतिवर्ष, अहमदाबाद 36 हजार टन प्रतिवर्ष, हैदराबाद 32 हजार टन प्रतिवर्ष तथा पुणे 26 हजार टन प्रतिवर्ष ई-कचरा उत्सर्जित करता है।
रिपोर्ट के अनुसार देश में कुल इलेक्ट्रॉनिक कचरे का महज 2.5 फीसदी ही पुनर्चक्रित हो जाता है। बाजार में 95 प्रतिशत से अधिक इलेक्ट्रॉनिक कचरे का प्रबंधन असंगठित क्षेत्र तथा कबाड़ी वाले करते हैं। इसके कारण प्राकृतिक संसाधनों, पर्यावरण एवं लोगों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है।
ई-कचरे इकठ्ठा करने के काम कई लाख बच्चे करते हैं
रिपोर्ट के अनुसार देश में 10-14 साल की उम्र के करीब पांच लाख बच्चे ई-कचरे के प्रबंधन की गतिविधियों में काम करते हैं। उन्हें समुचित संरक्षण भी नहीं मिलता है। एसोचैम ने इन गतिविधियों से बच्चों को दूर रखने के लिए कड़े कानूनो की वकालत की है।
रिपोर्ट में कहा गया कि ई-कचरे में सबसे ज्यादा 70 प्रतिशत हिस्सा कंप्यूटरों के उपकरणों का होता है। इसके बाद दूरसंचार उपकरण 12 प्रतिशत, इलेक्ट्रिकल उपकरण आठ प्रतिशत, चिकित्सकीय उपकरण सात प्रतिशत तथा अन्य घरेलू उपकरण चार प्रतिशत का स्थान है।
ई-कचरे को साइंटिफिक तरिके से ठिकाने नहीं लगाया जाता
ई-कचरे का प्रबंधन मुख्यतः गैर-वैज्ञानिक तरीके से किया जाता है। इससे दिल्ली के मायापुरी में हुई रेडियोधर्मी विकिरण जैसी दुर्घटना की आशंका रहती है। इलेक्ट्रॉनिक कचरे में मुख्यतः कम्पयूटर मॉनिटर, मदरबोर्ड, कैथोड-रे ट्यूब्स, प्रिंटेड सर्किट बोर्ड, मोबाइल फोन एवं चार्जर, कॉम्पैक्ट डिस्क, हेडफोन एवं एलसीडीध्प्लाज्मा टीवी, एयर कंडिशनर, रेफ्रिजरेटर आदि होते हैं। इनमें एक हजार से अधिक टॉक्सिक पदार्थ होते हैं।
दिल्ली देश का सबसे बड़ा ई-कचरा बाजार
एसोचैम ने कहा कि गैर-पारंपरिक तरीके से पुनर्चक्रण की प्रक्रिया काफी पिछड़ी एवं नुकसानदेह है। यह बेहद असुरक्षित है और इनसे पर्यारवरण में टॉक्सिन की मात्रा बढ़ती है। उसने इस क्षेत्र के लिए नियामक की व्यवस्था करने तथा कचरा संग्रह केन्द्र बनाने की भी मांग की। रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली देश का सबसे बड़ा ई-कचरा बाजार है। देशभर का 30 से 40 प्रतिशत ई-कचरा यहीं के बाजार में आता है। बेंगलुरु और चेन्नई इसके अन्य बड़े बाजार हैं।
मानव, पशु पक्षी के लिए खतरा है ई- वेस्ट
आपको बता दें कि इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के निर्माण में कई तरह के विषाक्त पदार्थों का इस्तेमाल होता है जिनमें सीसा, पारा, कैडमियम और आर्सेनिक शामिल हैं। ये विषाक्त पदार्थ पर्यावरण में प्रविष्ट हो कर ज़मीन, हवा, पानी को प्रदूषित कर सकते हैं। इसके काम करने वाले लोग खतरनाक बीमारियों के शिकार हो सकते हैं।
इंटरपोल के एजेंटों ने यूरोपियन यूनियन के देशों से रवाना होने वाले हर तीन कंटेनरों में से एक कंटेनर गैरकानूनी इलेक्ट्रॉनिक कचरे से लदा हुआ पाया। इसके बाद 40 कंपनियों के खिलाफ आपराधिक जांच आरंभ की गई। नए तकनीकी फीचरों की वजह से लोग जल्दी-जल्दी अपने मोबाइल फोन, कंप्यूटर और टीवी बदल रहे हैं।
बढ़ सकती है भारत की मुश्किलें
इलेक्ट्रॉनिक कचरे के उत्पादन में चीन सबसे आगे है। पिछले साल उसने 1.11 करोड़ टन कचरे का उत्पादन किया। दूसरे नंबर पर अमेरिका है जहां 1 करोड़ टन कचरा उत्पन्न हुआ, हालांकि एक औसत अमेरिकी नागरिक 29.5 किलो इलेक्ट्रॉनिक कचरा फेंकता है जबकि चीन में यह दर पांच किलो प्रति व्यक्ति से भी कम है। संयुक्त राष्ट्र रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि भविष्य में अमेरिका से इलेक्ट्रॉनिक कचरे का सारा निर्यात भारत पहुंच सकता है क्योंकि दुनिया में कांच गलाने वाली भट्ठियां शीघ्र बंद होने वाली हैं।
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