नई दिल्ली/टीम डिजिटल। हर साल मई के दूसरे हफ्ते के रविवार को मातृ दिवस यानी मदर्स डे मानया जाता है। इसको लेकर सारा बाजार तरह - तरह के ग्रीटिंग्स कार्ड , फूल और न जाने कैसे - कैसे आकर्षक तौहफों से सजा होता है। साथ ही इस दिन अपनी माँ को बेहतरीन उपहार देने के लिए मंहगा और आकर्षक उपहार खरीदने की होड़ मच जाती है। यह तक की इस दिन आप में से ज्यादातर लोग अपने माँ के साथ फोटों खीचवाकर सोशल मीडिया पर डालते है। लेकिन मदर्स डे के अगले दिन आप उन सभी बातों और वादों को भूल जाते जो अपने अपनी प्यारी मां से उस दिन किए होते है।
फैंस के दिलों पर राज करने वाले ये खिलाड़ी, जिनका मां के बिना एक पल भी है अधूरा
क्या अपने ये कभी ये सोचा है कि एक दिन के दिखावे से आपकी माँ का क्या हाल होता होगा, यानी वो आपके प्यार को फिर से उस ही तरह से पाने के लिए अगले वर्ष के मदर्ड डे का इंतजार करती होगी है। मां सिर्फ आपके लिए खाने बनाने का, कपड़ धोने आदि का ही काम नहीं करती है। मां शब्द का इस्तेमाल तो बेहद ही पवित्र रूप से किया जाता है।
भारत में तो मां का महत्व आदिकाल से हमारे शास्त्रों में बताया गया है कि माँ अपने बच्चों को सुखी, योग्य और समर्थ बनाने के लिए अपना पूरी जिंदगी अपने बच्चे के नाम कर देती है। जो हर कष्ट, सहने के बाद भी अपने बच्चे की हर परेशानी को मुस्कुरती हुई हल करती । जब हम दुखी होते है तो वही मां आपके बिना कुछ बताए भी आपके दुख की गहराई को जान लेती है ह और आपके दर्द को अपना दर्द समझकर आपको हिम्मत देने का काम करती है।
एक माँ अपने बच्चे के जन्म से पहले ही उसके द्वारा दी गई हर पीड़ा को अपनी जिंदगी का हिस्सा मान कर सहे लेती है। एक माँ ही होती है जिसे पता होता है कि जिस औलाद को उसने 9 महीने तक अपनी कोख में रखा होता है उसके जीवन का आसली मूल्य क्या है। ऐसा में ये बेहद जरूरी है कि आप अपनी मां को उस एहसास से रूबरू कराए जो सिर्फ कुछ ही दिनों का नहीं बल्कि पूरी जिंदगी भर उनके चेहरे पर मुकसान लाने का काम करें।
माँ के इस महत्व को डॉ. योगेन्द्र नाथ शर्मा अरूण की कविता माँ का दिल सागर अगम में बेहतरीन तरीके से दर्शाया गया हैः
जब तक माँ जग में रहे, बेटा बेटा होय! माँ छोड़े तो कुछ नहीं, बेटा चुपचुप रोय!!
मामता बन साकार माँ , जग में लेती रूप! शीतलता संतान को, खुद ले लेती धूप!!
जब तक माँ का साथ है, नहीं चाहिए और! माँ जिस दिन संग छोड़ती, मिले न कोई ठौर !!
माँ का दिल सागर अगम , जिसका ओर न छोर ! माँ के बिन संतान है, ज्यों पतंग बिन डोर !!
प्रभु रूठे माँ ठौर है, माँ तो रूठे नाहि ! प्रभु को चाहो देखना, देखो माँ मन माहि !!
माँ धरती का रूप है, दिव्य क्षमा साकार ! सागर सा दिल माँ लिए, नित करती उपकार !!
माँ मर जाए जन्म दे, फिर भी रहती पास ! रोम - रोम में नित रमे , याद करे हर साँस !!
माँ का ऋण चुकता नहीं, करलो जतन हज़ार ! दो आँसू बस भाव के कर दे बेडा पार !!
माँ केवल अहसास है, जैसे पुष्प - सुगंध ! रमी रहे मन में सादा, तो़ड़े जगत के बंध !! माँ मेरी पहचान है, माँ से पाई देह ! नित्य रहेगी भाव बन, नहीं तनिक संदेह !!
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