Tuesday, Sep 26, 2023
-->
special on amrita pritam birthday a story of silent love

#AmritaPritam : खामोश-इश्क की एक दास्तां

  • Updated on 8/31/2020
  • Author : National Desk

नई दिल्ली/ चंदन जायसवाल। इश्क की कोई भाषा नहीं होती है, इसे मजहब या वक्त की बेडियों से नहीं बांधा जा सकता है। प्यार (Love) की कहानियों के किरदार आज भी जीवित हैं। हीर-रांझा, लैला-मजनू मुहब्बत की अमर इबारत लिखकर गए हैं, जिनके इश्क के अफसाने लोगों में बेइंतहा जुनून (Passion) पैदा करते हैं। मुहब्बत की दुनिया में आज भी अमृता प्रीतम का नाम अमर है। प्यार में डूबी अमृता (Amrita) की कलम से उतरे शब्द ऐसे हैं जैसे चांदनी को अपनी हथेलियों के बीच बांध लेना। समाज की तमाम बेडियों को तोड़कर खुली हवा में सांस लेने वालीं, आजाद ख्यालों वालीं अमृता प्रीतम पंजाब (Punjab) की पहली कवियत्री थी।

Navodayatimes

जन्मदिवस पर विशेष: अमृता प्रीतम ने रखी थी लिव-इन की नींव!

अमृता प्रीतम की आत्मकथा ‘रसीदी टिकट’ की भूमिका में उन्होंने कुछ पंक्तियां लिखी। उन्होंने लिखा, ‘मेरी सारी रचनाएं, क्या कविता, क्या कहानी (Story), क्या उपन्यास, सब एक नाजायज बच्चे (Children) की तरह हैं। मेरी दुनिया (World) की हकीकत ने मेरे मन के सपने से इश्क किया और उसके वर्जित मेल से ये रचनाएं पैदा हुईं। एक नाजायज बच्चे की किस्मत इनकी किस्मत है और इन्होंने सारी उम्र साहित्यिक समाज के माथे के बल भुगते हैं। अपनी रचनाओं का यह परिचय न सिर्फ अमृता प्रीतम के विद्रोही तेवर को बताता है, बल्कि साहित्यिक समाज के लिए उनके विक्षोभ और दुख को भी दिखाता है।

Navodayatimes

B'day Special: अमृता प्रीतम को सिगरेट की नहीं, साहिर लुधियानवी की लत थी

हालांकि यह सच अमृता के हिस्से का सच होते हुए भी कुछ मायने में अंशत: ही सच है। यह ठीक है कि उनके बगावती तेवर उन्हें हमेशा मुश्किल में डालते रहे। अपनी मातृभाषा में उन्हें तब वह मनोवांछित सम्मान भी नहीं मिल रहा था पर अनुवादों के जरिये अमृता तब की एक ऐसी अकेली लेखिका ठहरती हैं जिनके प्रशंसक देश-विदेश में फैले हुए थे। आज अमृता प्रीतम का आज जन्मदिन (Birthday) है। वही अमृता जिनके प्रेम को सरहदों, जातियों, मजहबों या वक्त के दायरे में नहीं बांधा जा सकता। लोग कविता लिखते हैं और जिंदगी जीते हैं मगर अमृता जिंदगी लिखती थी और कविता (Poem) जीती थी। अमृता ने साहिर से प्यार किया और इमरोज ने अमृता से और फिर इन तीनों ने मिलकर इश्क की वह दास्तां लिखी जो अधूरी होती हुई भी पूरी थी। अगर अमृता को साहिर या इमरोज को अमृता मिल गई होती तो मुमकिन था कि इनमें से कोई पूरा जाता लेकिन इस सूरत में इश्क अधूरी रह जाती।

जब उस रात अमृता को फोन पर आई खबर 'साहिर नहीं रहे', तो कुछ यूं था मंजर

Navodayatimes

अमृता प्रीतम आजाद ख्याल लड़कियों की आदर्श थीं। इनमें सबसे ज्यादा खास बात ये रही कि वह लड़कियां उनकी भाषा और क्षेत्र से परे थी। यह सबूत (Proof) है कि भाषा की दीवार अमृता के विचारों में रूकावट पैदा नहीं कर सकी। अमृता की बेहद कम उम्र में प्रीतम सिंह के साथ शादी के बंधन में बंधी थी। अमृता ने अपनी शादीशुदा जिंदगी (Married life) से बाहर निकलने का फैसला किया लेकिन साहिर का साथ भी ज्यादा न चल पाया। जिंदगी के आखिरी समय में सच्चा प्यार उन्हें इमरोज के रूप में मिला।       

पढ़ें, अपनी शर्तों पर जीने वाली अमृता प्रीतम की कविताएं, जिन्हें चाह कर भी नहीं भूल पाएंगे आप

 Navodayatimes

अमृता और इमरोज 
इमरोज अमृता के जीवन में काफी देर से आए। अमृता कभी-कभी कहा करती थीं ‘अजनबी तुम मुझे जिंदगी की शाम में क्यों मिले, मिलना था तो दोपहर में मिलते।’ दोनों ने साथ रहने के फैसला किया और दोनों पहले दिन से ही एक ही छत के नीचे अलग-अलग कमरों में रहे। जब इमरोज ने कहा कि वह अमृता के साथ रहना चाहते हैं तो उन्होंने कहा पूरी दुनिया घूम आओ फिर भी तुम्हें लगे कि साथ रहना है तो मैं यहीं तुम्हारा इंतजार करती मिलूंगी। कहा जाता है कि तब कमरे में सात चक्कर  लगाने के बाद इमरोज ने कहा कि घूम लिया दुनिया, मुझे अभी भी तुम्हारे ही साथ रहना है।

अमृता रात के समय शांति में लिखती थीं, तब धीरे से इमरोज चाय रख जाते। यह क्रम बरसों तक चला। इमरोज जब भी उन्हें स्कूटर पर ले जाते थे और अमृता की उंगलियां हमेशा उनकी पीठ पर कुछ न कुछ लिखती रहती थीं...और यह बात इमरोज भी जानते थे कि लिखा हुआ शब्द साहिर ही है। जब उन्हें राज्यसभा के लिए मनोनीत किया गया तो इमरोज हर दिन उनके साथ संसद भवन जाते थे और बाहर बैठकर उनका घंटों इंतजार करते थे। अक्सर लोग समझते थे कि इमरोज उनके ड्राइवर हैं। अमृता का आखिरी वक्त तकलीफ में गुजरा। उन्हें चलने-फिरने में तकलीफ  होती थी तब उन्हें नहलाना, खिलाना, घुमाना जैसे तमाम रोजमर्रा के काम इमरोज किया करते थे।

एक महान शख्सियत थीं अमृता प्रीतम, आज भी बसतीं हैं प्यार करनें वालों के दिलो में...

Navodayatimes

भाई ईशान के साथ बड़े पर्दे पर नजर आ सकते हैं शाहिद कपूर, लेकिन

31 अक्तूबर 2005 को अमृता ने आखिरी सांस ली, लेकिन इमरोज का कहना था कि अमृता उन्हें छोड़कर नहीं जा सकती वह अब भी उनके साथ हैं। इमरोज ने लिखा था -  

उसने जिस्म छोड़ा है, साथ नहीं। 
वो अब भी मिलती है, कभी तारों की छांव में, 
कभी बादलों की छांव में, 
कभी किरणों की रोशनी में 
कभी ख्यालों के उजाले में 
हम उसी तरह मिलकर चलते हैं चुपचाप, 
हमें चलते हुए देखकर फूल हमें बुला लेते हैं, 
हम फूलों के घेरे में बैठकर एक-दूसरे को 
अपना अपना कलाम सुनाते हैं 
उसने जिस्म छोड़ है साथ नहीं...।’ 

Navodayatimes

अमृता और साहिर 
अमृता को साहिर लुधियानवी से बेपनाह मोहब्बत थी। साहिर लाहौर में उनके घर आया करते थे। साहिर चेन स्मोकर थे। साहिर के होठों के निशान को महसूस करने के लिए अमृता उन सिगरटों की बटों को होंठ से लगा उसे दोबारा पीने की कोशिश करती थीं। साहिर बाद में लाहौर से मुंबई चले आए। साहिर के जीवन में गायिका सुधा मल्होत्रा भी आ गई थीं, लेकिन अमृता का प्यार आखिरी वक्त तक बना रहा था।

KBC 11: MP की महिला करोड़पति बनने से चूकीं, लेकिन जीता सभी का दिल

सम्मान 
अमृता प्रीतम ने 100 से अधिक कविताओं की किताब लिखी, साथ ही फिक्शन, बायोग्राफी, आलेख और आटोबॉयोग्राफी लिखा, जिसका कई भारतीय भाषाओं सहित विदेशी भाषाओं में भी अनुवाद हुआ। अमृता प्रीतम पहली महिला लेखिका हैं जिन्हें 1956 में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। 1982 में उन्हें ‘कागज ते कैनवास’ के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला। 2004 में पद्मविभूषण भी प्रदान किया गया।     

Hindi News से जुड़े अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक पर ज्वॉइन करें, ट्विटर पर फॉलो करें।हर पल अपडेट रहने के लिए NT APP डाउनलोड करें। ANDROID लिंक और iOS लिंक।

comments

.
.
.
.
.