देहरादून/ब्यूरो। विजय बहुगुणा और हरीश रावत के समय से ही पूंजी निवेश को तरस रहे उत्तराखंड में त्रिवेंद्र सरकार से बड़ी उम्मीदें हैं। विधायकों की संख्या के गणित से भी और केन्द्रीय आलाकमान की कसौटी पर खरा उतरने के लिहाज से भी मौजूदा सरकार की मजबूती और स्थिरता पर किसी प्रकार की आशंका नहीं है। कहा जाता है कि निवेश से पहले उद्योगपति सरकार की ताकत को जरूर परखते हैं।
इसका मतलब यही है कि त्रिवेंद्र सरकार अभी अपनी मजबूती का भरोसा जताने में नाकाम रही है। क्योंकि, उनका बैंकाक दौरा भी सिर्फ आश्वासनों और उम्मीदों के साथ खत्म हुआ है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत करीब डेढ़ दर्जन अधिकारियों, सलाहकारों और उद्योगपतियों के साथ बैंकाक गए थे। वहां उन्होंने 17 अप्रैल को इनवेस्टर मीट में हिस्सा लिया।
देश-विदेश से आए निवेशकों को यह समझाने का प्रयास किया कि उत्तराखंड में निवेश क्यों करना चाहिए। 18 अप्रैल को उन्होंने फूड प्रोसेसिंग और पर्यटन क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों और उद्योगपतियों को उत्तराखंड की भौगोलिक खासियत और यहां विशेष किस्म के खाद्य उत्पादों की गुणवत्ता बताई।
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साथ ही उद्योग के लिए की गई सिंगल विंडो सिस्टम की व्यवस्था, भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टालरेंस की नीति, ईज आफ डूईंग बिजनेस, कानून और व्यवस्था के बेहतर हालात, सक्षम नौकरशाही और मजबूत सरकार जैसी बुनियादी सुविधाएं और आवश्यकताओं को भी रखा।
कुल मिलाकर उन्होंने निवेशकों को आकर्षित करने का हर संभव प्रयास किया। कार्यक्रम के दूसरे दिन थाईलैंड के भारतीय दूतावास की ओर से आयोजित कार्यक्रम में वहां के उप वाणिज्य मंत्री ने उत्तराखंड के सीएम का स्वागत किया। निवेश को लेकर कई आश्वासन दिए गए।
इन आश्वासन का निचोड़ यही था कि पर्यटन और फूड प्रोसेसिंग क्षेत्र में थाईलैंड के विशेषज्ञ और अफसर जल्द ही उत्तराखंड के अपने समकक्षों से मिलेंगे और संभावनाओं पर विचार विमर्श करेंगे। इसके लिए समय और तारीख अभी तय नहीं हुई है।
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यदि सरकारी दावों पर ही यकीन करें, तो इसके अतिरिक्त कहीं से यह सूचना नहीं है कि किसी निवेशक ने उत्तराखंड में निवेश करने के लिए व्यक्तिगत रूप से दिलचस्पी ली। यह सच है कि देवभूमि में निवेश की सारी संभावनाएं मौजूद हैं। कानून व्यवस्था से लेकर ईज ऑफ डूईंग बिजनेस तक, निवेशकों की सुविधाओं का खयाल रखा जा रहा है।
इसके बावजूद कोई भी योजना धरातल पर नहीं उतर रही है। इससे पहले भी अप्रैल 2017 में चीनी निवेशकों का दस सदस्यीय दल उत्तराखंड आया था और काशीपुर से लेकर सिडकुल तक का दौरा किया था। इस टीम ने उत्तराखंड में दस हजार करोड़ के निवेश का आश्वान दिया।
यह भी दावा किया गया कि कम से कम 15 हजार लोगों को रोजगार मिलेगा। चीनी टीम ने तत्कालीन मुख्य सचिव एस. रामास्वामी और सिडकुल के एमडी आर राजेश से भी मुलाकात की थी। परंतु काफी शांत और संयमित मौहाल में मिला चीनी आश्वासन अब तक जमीं पर नहीं उतर पाया है। इसी तरह ब्रिटिश निवेशकों का भी कोरा आश्वासन देकर लौट चुका है।
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खास बात यह है कि निवेशक विजय बहुगुणा के समय से ही उत्तराखंड से मुख मोड़ रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि पहले विजय बहुगुणा और बाद में हरीश रावत के कार्यकाल के दौरान विरोधी यह बात फैलाते रहे कि अस्थिर सरकार है। यह सरकार कभी भी बदल सकती है। इस कारण निवेश करना ठीक नहीं होगा क्योंकि नई सरकार अपने हिसाब से चीजों को परिभाषित करना चाहती है।
त्रिवेन्द्र रावत के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के साथ ऐसी स्थिति नहीं है। हर दृष्टिकोण से यह मजबूत सरकार है। ऊपर से सरकार चाहती भी है कि प्रदेश में निवेश का माहौल बने। मुख्यमंत्री का बैंकाक दौरा इसी संभावनाओं को तलाशने के लिए था। इसके बावजूद कोई बात नहीं बनी।
इसका एक कारण यह भी है कि सीएम के साथ बैंकाक पहुंची टीम में विशेषज्ञों के बदले उन लोगों को जगह दी गयी जो सीएम के करीबी हैं। ऐसे लोगों को विदेश यात्रा से उपकृत करने का प्रयास किया गया। निवेश पर बातचीत करने के बदले इनकी प्राथमिकता कुछ और रही। इसका नतीजा तो यही होना था। हालांकि बैंकाक से लौटे सीएम ने यही दावा किया है कि निवेश को लेकर काफी अनुकूल माहौल में वार्ता हुई और जल्द ही स्थितियां भिन्न मिलेंगी। देखना यह है कि आगे क्या होता है।
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