नई दिल्ली/कुमार आलोक भास्कर। आज पर्यावरण दिवस है। हर साल की भांति इस साल तो रस्मअदायगी नहीं हो पाई जिसके लिये हम सब अभ्यस्त है। लेकिन पर्यावरण को बचाने के नाटक से भी हम बहुत छोटा-सा योगदान तो जरुर देते है,इसमें कोई किंतु-परंतु नहीं होगी। हालांकि यह सच है कि पर्यावरण को बचाने की मुहिम को तेज करने की भी आवश्यकता है।
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इस साल जब वैश्विक महामारी कोरोना वायरस ने दस्तक दी तो किसी ने नहीं सोचा होगा कि पूरी की पूरी दुनिया इससे त्रस्त नजर आएगी। लेकिन इसी कोरोना काल में कुछ खुशखबरी भी प्रकृति को लेकर सुनने को मिली है,जिसे सुखद कहा जा सकता है। मसलन भारत में कई शहरों में हाल के वर्षों में प्रदूषण अपने चरम पर रही,नदियां दूषित होने लगी। सरकार से लेकर आमजनों तक कई प्रोग्राम तय करके और करोड़ों रुपये के खर्च लगाकर भी प्रदूषण का स्तर कम नही नहीं कर सका। वहीं नदियां भी दूषित होने से नहीं बच पाई।
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लेकिन इस कोरोना काल में नदियां भी साफ हुई और दिल्ली जैसे महानगरों में भी शुद्ध हवा लोगों को नसीब हुई। हालांकि यह बात सच है कि कई सरकारों ने नदियों और शहरों के बढ़ते प्रदूषण को कम करने के वायदे करके सत्ता भी पाई है। लेकिन जब सरकारें भी कामचलाऊ निर्णय लेने लगी तो प्रकृति ने खुद की सफाई का बीड़ा उठाया,फिर कोरोना काल में करके भी दिखा दिया है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि पर्यावरण को साफ करने की मुहिम को छोड़ दिया जाए,दरअसल यह प्रकृति के तरफ से मानव जाति को दिया गया संदेश है जिसे पढ़ने की बेहद आवश्यकता है। कोई नहीं भूला होगा कि दिल्ली में ही प्रदूषण स्तर को कम करने के लिये कैसे सरकरा और विपक्ष एक-दूसरे पर प्रहार करने से नहीं चूकते रहे है।
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हालांकि सीएम अरविंद केजरीवाल ने गाड़ियों के लिये ऑड-ईवन फॉर्मूला निकाल कर प्रदूषण के स्तर को आंशिक कम करने में सफलता भी पाई है। लेकिन पराली जलाने को लेकर कभी किसानों को दोष ठहराने तो कभी जेल भेजे जाने से असल प्रदूषण की समस्या का समाधान नहीं हो पाएगा। वहीं पीएम नरेंद्र मोदी ने भले ही पॉलिथीन के प्रयोग को बंद करने की अपील पिछले साल ही गांधी जयंती पर किया हो,लेकिन यह अब तक बंद न होकर सरकार को ही चिढ़ा रहा है। देश भर में अपने-आसपास के बाजारों में बड़ी आसानी से फॉलिथीन के प्रयोग करते हुए लोगों को देखा जा सकता है। जो आगाह करता है कि हम अभी-भी पर्यावरण को लेकर सचेत नहीं है।
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