नई दिल्ली। अनामिका सिंह। कहा जाता है कि जब किसी संत की दुआ लगती है तो इंसान मालोमाल हो जाता है लेकिन जब उसी संत की बद्दुआ मिले तो ताश के पत्तों की तरह जिंदगी बिखर जाती है। ऐसा ही कुछ तुगलकाबाद का किला बनवाने वाले ग्यासुद्दीन तुगलक के साथ भी हुआ। बताया जाता है कि उनसे नाराज होकर सूफी संत हजरत निजामुद्दीन औलिया ने गुस्से में उन्हें बद्दुआ देते हुए कहा था कि सुल्तान दिल्ली नहीं देखेगा उसके लिए ‘दिल्ली दूर अस्त’ यानि ‘दिल्ली दूर है’। एक संत की बद्दुआ ने तुगलकाबाद को चार सालों में ही बर्बाद कर दिया और एक विशालकाय लाल पत्थरों से बना किला मलबे के ढेर में तब्दील हो गया। इतिहासकार कहते हैं कि औलिया और ग्यासुद्दीन के बीच इतनी कडवाहट थी कि उन्होंने कहा था कि इस किले में या तो सियार बसेंगे या फिर गुज्जर। क्या देखी है आपने शाहजहांनाबाद की सिटी वॉल
जब मुबारकशाह की बात लगी तुगलक के दिल पर अरावली पर्वत श्रृंख्ला की ओट में महरौली-बदरपुर रोड पर करणी सिंह शूटिंग रेंज व ओखला औद्योगिक क्षेत्र के नजदीक बना है तुगलकाबाद किला। जिसे साल 1321 में तुगलक वंश के संस्थापक ग्यासुद्दीन ने बनवाया था। इस किले का निर्माण दिल्ली के इतिहास में काफी रोचक माना जाता है। इतिसाह में वर्णित है कि गाजी मलिक उर्फ ग्यासुद्दीन तुगलक जोकि खिलजी वंश का एक प्रमुख तुगलक था। दिल्ली में मुबारकशाह का शासन था और सारा शासन सीरी फोर्ट से चलाया जाता था। उस समय मंगोल बहुत सक्रिय थे, पंजाब के गवर्नर ग्यासुद्दीन ने मुबारकशाह को एक नए किले का निर्माण करवाने की बात की जिसपर मुबारकशाह ने मजाक उडाते हुए कहा कि जब तुम सुल्तान बन जाना तो खुद करवा लेना। मुबारकशाह की मौत के बाद साल 1321 में जब ग्यासुद्दीन तुगलक ने दिल्ली की बागडोर संभाली तो सबसे पहले तुगलकाबाद की पहाडियों पर किले का निर्माण करवाना शुरू किया। खुद बनवाया था अपने लिए ग्यासुद्दीन तुगलक ने मकबरा
निजामुद्दीन के बावली निर्माण से चिढा बादशाह सूफी संत निजामुद्दीन औलिया भी उस समय एक बावली का निर्माण करवा रहे थे जब सुल्तान किला बनवा रहा था। सुल्तान के किले निर्माण के चलते औलिया की बावली का निर्माण कार्य अधर में लटक गया। ऐसे में औलिया ने रात में बावली का निर्माण करवाने का निश्चय किया। कहा जाता है कि जब बावली का निर्माण रात के समय चल रहा था तो सुल्तान ने गयासपुर बस्ती यानि निजामुद्दीन बस्ती में तेल की सप्लाई बंद कर दी। तेल ना मिलने पर औलिया ने अपने शिष्य नसीमुद्दीन महमूद को निर्देश दिया कि चिराग में तेल की जगह बावली का पानी डाल दिया जाए और महमूद पानी में अपनी अंगुली डाल कर छू ले तो वो तेल का काम करेगी और चिराग रौशन हो जाएंगे। ‘दिल्ली और उसका आंचल’ पुस्तक में इतिहासकार वाई डी शर्मा लिखते हैं कि 9 दिनों तक चिराग जलाकर बावली का काम पूरा किया गया, वहीं किले का भी काम पूरा हो गया और उसे राजधानी बना दिया गया। एक अंग्रेज ने खोला राज, फिरोजशाह नहीं बल्कि सम्राट अशोक की है लाट
अमीर खुसरो से भेजा औलिया को दिल्ली छोडने का सुल्तान ने संदेश बंगाल में विद्रोह को दबाने ग्यासुद्दीन को बंगाल की ओर कूच करना पडा। जब उसे औलिया की बावली बनवाने की जानकारी मिली तो ग्यासुद्दीन को गुस्सा आ गया। उसने अपने दरबारी कवि व औलिया के शिष्य अमीर खुसरो से संदेश औलिया को भिजवाया कि वो राजधानी छोड दें वरना उनका सिर कलम कर दिया जाएगा। औलिया अपनी मां से मिलने अधचीनी गांव गए थे जब उन्हें शिष्यों से इसकी सूचना मिली। यह बात सुनते ही औलिया नाराज हुए और कहा कि सुल्तान दिल्ली नहीं देखेगा, उसके लिए दिल्ली दूर है। ग्यासुद्दीन जब अपने किले में लौट रहा था और मात्र 6 मील की दूरी पर था तो एक लकडी के मचान में दबकर उसकी मौत हो गई और वो कभी अपना किला नहीं देख पाया। बताया जाता कि पानी की कमी के चलते तुगलकाबाद को मात्र 4 सालों के भीतर ही खाली कर दिया गया और आजतक यह किला विरान व उजाड पडा हुआ है। अन्य राज्यों में निरस्त हुआ राशनकार्ड, अब काट रहे हैं दिल्ली में चक्कर
बेजोड है वास्तुकला दिल्ली का चौथा शहर तुगलकाबाद और इसका किला क्षेत्रफल में सबसे बडा है। इसके भीतर मस्जिदों, महलों, टावरों, इमारतों और टैंक भी देखे जा सकते हैं। बावजूद इसे अभिशप्त शहर माना जाता है, जिसे 1327 में ही खाली कर दिया गया। यहां ग्यासुद्दीन तुगलक का मकबरा एक ऊंचे प्रवेश द्वार से लाल बलुआ पत्थर से बना है। ग्रेनाइट से बनी किलेबंदी की दीवारों के विपरीत, मकबरे के किनारों का सामना चिकनी लाल बलुआ पत्थर से किया गया है और संगमरमर से खुदे हुए पैनलों और मेहराब सीमाओं के साथ जड़ा हुआ है। एक अष्टकोणीय ड्रम पर एक सुंदर गुंबद के आराम से नुकीला शीर्ष है जो संगमरमर और स्लेट के सफेद स्लैब से ढका है। इस शहर के 52 गेट होने की बात कही जाती है लेकिन वर्तमान में 13 ही बचे हैं। यहां 7 रैन वॉटर टैंक थे। मकबरे के अंदर तीन कब्रें हैं ग्यासुद्दीन के अलावा उसकी पत्नी और पुत्र मुहम्मद बिन तुगलक की। यहां कई भूमिगत मार्ग भी है और शाही महल भी। प्रदर्शनी के माध्यम से भारत छोडो आंदोलन की 79वीं वर्षगांठ
दीप्तिकरण से जगमगाता है अब किला भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा हाल ही में तुगलकाबाद किले का दीप्तिकरण (लाइटिंग) की गई है, जिससे शाम होने के बाद भी यह किला जगमगाता रहता है। एएसआई इस विरान किले को बसाने व पर्यटकों को इसके रोचक इतिहास से रूबरू करवाने का पूरा प्रयास कर रहा है। यहां व्यस्क भारतीयों की टिकट 20 रूपए की है और बच्चों का प्रवेश मुफ्त है जबकि विदेशी सैलानियों को 250 की टिकट लेनी होती है।
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