
दिवाली, जो बिन दीयों के हमेशा अधूरी रहती है। कुम्हार की चाक जब चलती है तो मिट्टी को कई आकार देती है। इससे दीए, मंदिर, सजावटी सामान, देवी-देवताओं की मूर्तियों से लेकर आभूषण तक तैयार होते हैं। शायद ही ऐसा कोई भी त्योहार हो जो बिन कुम्हार के दीयों के पूरा हो सके, उसमें दिवाली तो है ही अंधेरे से रौशनी क