गीता में लिखा है हमें किसी बात का अफसोस नहीं करना चाहिए। जो हुआ अच्छा हुआ, जो हो रहा है अच्छा हो रहा है और जो होगा वो भी अच्छा होगा। इस सोच को अपनाने से नेगेटिविटी से दूर रहा जा सकता है।

गीता में मन को साधना सबसे जरूरी बताया गया है। अर्जुन को उपदेश देते हुए भगवान कृष्ण ने समझाया था कि जो अपने मन को जीत लेगा वो कभी बुरे विचारों के आधीन नहीं होगा, क्योंकि मन ही सबसे बड़ा मित्र या शत्रु होता है।

गीता में कार्य के महत्व को बताते हुए कहा गया है कि कर्म करते जाओ, फल की चिंता मत करो । परिणाम के बारे में बार-बार सोचने से तनाव बढ़ता है, इसलिए बिना नतीजों के बारे में सोचे अपना कर्म करते जाना चाहिए।

गीता ध्यान और योग को मन शांत करने का सर्वोत्तम उपाय बताती है। जिससे दिल और दिमाग शांत होते हैं और अच्छे विचारों में बढ़ोतरी होती है। ध्यान को ही मन की दवा कहा गया है।

गीता बताती है कि जब काम को बिना किसी स्वार्थ और हल्के मन से किया जाए तो भावनाओं को आजादी मिलती है, जो हमारे विचारों को शांत करता है। निष्काम भाव से काम करने से हम नकारात्मकता ऊर्जा को दूर कर सकते हैं।

गीता के उपदेश में बताया गया है कि भगवान में आस्था रखने से डर और चिंता कम हो जाती है। हमारा दिमाग शांत होता है, जिससे ज्यादा सोचना या बुरे विचारों का प्रभाव नहीं पड़ता। भगवान की शरण में जाना हर उपाय का समाधान दे सकता है।